स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की?
मेरे विवाह की बात सुनकर मां काली के पैर पकड़ कर वे रोये थे. रोते हुए कहा था, “मां, वह सब फेर दे – मां, नरेन कहीं डूब न जाय!
श्री
रामकृष्ण जब एक दिन मेरे अध्ययन-कक्ष में पधारकर मुझे ब्रह्मचर्य पालन का उपदेश दे
रहे थे, तो मेरी नानी ने ओट से सब
सुन कर मेरे माता-पिता से कर दिया. सन्यासी से मिलकर मैं भी सन्यासी को जाऊंगा -
इस आशंका से वे उसी दिन मेरे लिए विवाह के लिए विशेष चेष्टा करने लगे. परंतु करने
से क्या होता है? श्री रामकृष्ण की प्रबल इच्छा के विरुद्ध उन
लोगों की सारी चेष्टा बह गयीं. सभी बातें तय हो जाने पर भी कुछ मामलों में दोनों पक्षों
के बीच मामूली बातों पर मतभेद होने के कारण विवाह संबंध टूट गया.
मेरी जीवनकथा, स्वामी विवेकानंद, पृष्ट संख्या 19
जब मैं
हर स्त्री में केवल जगदंबा को ही देखता हूं, तो फिर मैं विवाह क्यों करूं? मैं सब त्याग क्यों
करता हूँ? अपने को सांसारिक बंधनों व आसक्तियों से मुक्त
करने के लिए, ताकि मेरा पुनर्जन्म न हो. मृत्यु के बाद मैं अपने आप को
परमात्मा में मिला देना चाहता हूं, परमात्मा के साथ एक को
जाना चाहता हूं. मैं ‘बुद्ध’ हो जाऊंगा.
मेरी जीवनकथा, स्वामी विवेकानंद, पृष्ट संख्या 263
आप लोगों
ने शायद सोचा हो कि मेरे अंदर कोई विचित्र शक्ति होगी. मैं आप लोगों को बताना
चाहूंगा कि मेरे अंदर एक शक्ति है और वह कि मैंने अपने जीवन में कभी एक बार भी यौन-
विषयक विचार को प्रश्रय नहीं दिया है. मैंने अपने मन को, चिंतन को प्रशिक्षित किया और जिन शक्तियों को व्यक्ति
उस दिशा में प्रेरित करता है, उन्हें मैंने एक उच्चतर दिशा
में उन्नीत किया; और यह एक ऐसी प्रबल शक्ति में विकसित हुआ, जिसे कोई भी रोक नहीं सकता.
मेरी जीवनकथा, स्वामी विवेकानंद, पृष्ट संख्या 102
Post A Comment
No comments :