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शत्रु को ऐसे शांत करें : भगवान बुद्ध

एशिया महादेश के मानव सभ्यता को बदलने में भगवान बुद्ध का सबसे बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने हिंसक और बर्बर मानव जाति को करुणा और मैत्री का पाठ पढ़ा कर सभ्य बनाया। यही कारण है कि पूरे एशिया महादेश में आज भी भगवान बुद्ध सर्वमान्य ईश्वर हैं। 483 इस्वी पूर्व राजगीर में प्रथम बौद्ध संगिति में भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह किया गया था। इन ग्रंथों का नाम त्रिपिटक दिया गया। इन ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है-धम्मपद। धम्मपद के प्रथम से पांचवें सूत्र में भगवान बुद्ध ने शत्रु को शांत करने के उपाय बताए हैं।



मनोपुव्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्क व वहतो पदं।।1।।
सभी धर्मों का मन अग्रगामी है, मन ही प्रधान है, कर्म मनोमय है, जब कोई विकृत मन से बोलता है या काम करता है तो जैस गाड़ी के साथ पहिया चलता है वैसे ही दुख उसके साथ रहता है।



मनोपुव्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं सुखमन्वेति, छायाव अनपायिनी।।2।।
सभी धर्मों का मन अग्रगामी है, मन ही प्रधान है, कर्म मनोमय है, यदि कोई स्वच्छ मन से बोलता या काम करता है तो कभी ना साथ छोड़ने वाली छाया की तरह सुख उसके साथ रहता है।


               
अक्कोच्छिमं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे।
ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति।।3।।
मुझे गाली दिया, मुझे मारा, मुझे हरा दिया, मुझे लूट लिया, जो मन में ऐसी गांठें बांधे रहता है उसका वैर कभी शांत नहीं होता है।



अक्कोच्छिमं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे।
ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति।।4।।
मुझे गाली दिया, मुझे मारा, मुझे हरा दिया, मुझे लूट लिया, जो मन में ऐसी गांठे नहीं बांधते, उनका पैर शांत हो जाता है।



न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीय कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो।। 5।।
इस संसार में कभी भी वैर से वैर शांत नहीं होते, बल्कि अवैर से शांत होते हैं। यही सनातन धर्म है।



परे च न विजानन्ति, मयमेत्थ यमामसे।
ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा।।6।।
अज्ञानी लोग नहीं जानते कि हम इस संसार से जानेवाले हैं, जो इसे जान लेता है, उनका वैर शांत हो जाता है।



अंग्रेजी में भी एक कहावत है- As you show so you reap । हिंदी में भी कई कहावतें हैं। जैसा बोओगे वैसा काटोगे। बोए पेड़ बबूल का आम कहां से होय। जैसी करनी वैसी भरनी। मन के हारे हार, मन के जीते जीत। इन छोटी-छोटी कहावतों को भले ही कोई महत्व न दे लेकिन इनके मनोवैज्ञानिक प्रभाव चमत्कारिक होते हैं।


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