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नवयौवनदिग्‍दर्शनम् सदा जवान रहेगी: शशिकान्‍त यादव

 पुस्‍तक समीक्षा 

‘क्या कहना है नौ का? कमाल की संख्या है। अकेली यही संख्या है जो सदा जवान बनी रहती है। सारे संसार में नौ की जवानी भरी हुई है। भारतीय मान्यता के आधार पर सृष्टि का आरंभ सत्य युग से हुआ है। सत्य, त्रेता, द्वापर एवं कलि- इन चार युगों में सृष्टि क्रम चलता है।’- ‘नवयौवनदिग्दार्शनम’/पृष्ठ संख्या-9

हिंदी एवं संस्‍कृत साहित्‍य के प्रखर चिंतक एवं ज्‍योतिषाचार्य विद्यावाचस्‍पति पं. विष्‍णुकांत शुक्‍ल लीक से हटकर लेखन के लिए ख्यात हैं। आज जब लोग गंभीर विषयों से दूरी बना रहे हों उस दौर में विष्णुकांत शुक्ल शास्त्रीय और गंभीर विषयों पर अपनी लेखनी चला रहे हैं। उनकी नई पुस्तक ‘नवयौवनदिग्‍दर्शनम्’ इसी तरह का एक प्रयास है।  यह पुस्तक भारतीय चिंतन धारा की उस शास्त्रीय परंपरा की एक कड़ी है जिसकी एक लंबी परंपरा रही है जो संस्कृत से विकासित होकर हिन्दी में भी आई।

पं. विष्‍णुकांत शुक्‍ल का जन्‍म उ.प्र. राज्‍य के खुर्जा जिले में सन् 1942 में हुआ, प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्‍च शिक्षा तक का अध्‍ययन इन्‍होने गृह जनपद खुर्जा से ही प्राप्‍त किया। विद्याध्‍ययन के पश्‍चात 1963 ई. से इन्‍होने अध्‍यापन कार्य का प्रारम्‍भ खुर्जा लक्ष्‍मणदास यजुर्वेद-आयुर्वेद महाविद्यालय से किया। तत्‍पश्‍चात जे.वी. जैन कालेज, सहारनपुर में हिंदी विभागाध्‍यक्ष के रूप में 25 वर्ष सेवा की। लेखन के क्षेत्र में इन्‍होंने कादम्बिनी, मुक्‍ता सांस्‍कृति, विज्ञान ज्‍योति, साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान, मनोरमा कनक प्रभा आदि हिंदी पत्रिकाओं तथा संस्‍कृत प्रतिभा विश्‍व संस्‍कृतम, स्‍वर मंगला, गैर वाणी, संवित, गांडिवम दूर्वा, अर्वाचीन संस्‍कृतम्, सांस्‍कृतिरत्‍नाकर आदि संस्‍कृत पत्रिकाओं में पिछले 40 वर्षों से लेखन किया । संपादन और अनुवाद के क्षेत्र में पद्मावत, पद्मावती समय, कवितावली, बिहारीसती (हिंदी), कादम्‍बरी (कथामुखम), नीतिशतकम्, श्रीमदभगवत्गीता (संस्‍कृत) संपादन एवं भास्‍यु देवकराम सुमन ग्रंथावली, संस्‍कृत शिक्षा संपादित की। इनकी स्‍फाटकी माला:प्रकाशित एवं उ.प्र. संस्‍कृत अकादमी द्वारा पुरस्‍कृत हुई है। इसके अलावा ये आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्‍न कार्यक्रमों में उपस्थित होते रहे है।

विद्यावाचस्‍पति पं. विष्‍णुकांत शुक्‍ल द्वारा लिखित ‘नवयौवनदिग्‍दर्शनम्’ (नौ जवान:एक बानगी) सन् 2017 में ‘देववाणी परिषद दिल्‍ली’ द्वारा प्रकाशित ‘नौ’ की संख्‍या को लेकर प्रस्‍तुत एक अद्वितीय पुस्‍तक है। इस पुस्‍तक के माध्‍यम से लेखक ने नौ की संख्‍या की महत्ता को सतयुग से लेकर क्रमश: त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग तक विधिवत रूप से रेखांकित किया है साथ ही आज वर्तमान समय की राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथ्यों और दैनंदिनी खबरों को भी रेखांकित किया है। मनुष्‍य जीवन की अनिवार्य उपयोगिता सांस और उसकी संख्‍या को भी लेकर लेखक ने विधिवत व्‍यौरा पुस्‍तक के प्रारंभ में प्रस्‍तुत किया है। उदाहरण के लिए लेखक ने एक घंटे में मनुष्‍य द्वारा ली और छोड़ी गयी सांस की संख्‍या को नौ सिद्ध किया है। लेखक के अनुसार मनुष्‍य सामान्‍यत: एक मिनट में 15 सांस लेता और छोड़ता है। अत: एक घंटे में ली गई सांस 900 होती है। अब इस संख्‍या का योग करने पर 9 की संख्‍या ही प्राप्‍त होती है।

इसके इसी क्रम में लेखक ने महाभारत की सैन्‍य व्‍यवस्‍था में भी नौ की संख्‍या की महत्ता को विधिवत रेखांकित किया है। जैसा कि हम सब जानते हैं संसार की सबसे बड़ी लड़ाई महाभारत की मानी जाती है। इस लड़ाई में अक्षौहिणी (जिसका क्षरण न हो) सेना का भी क्षरण हो गया था। यहां पर लेखक ने यह इंगित किया है कि इस आक्षौहिणी सेना के जिन 18 दिनों का युद्ध संबंधित था उसकी 18 संख्‍या का योग (1+8)=9 ही ठहरता है। इसी क्रम में लेखक ने महाभारत की सेना के विभाजन को भी रेखांकित किया है। जिसमें सेना का विभाजन 9 वर्ग में किया जाता था। जो कि क्रमश: इस प्रकार है- 1. पत्ति, 2. सेनामुख, 3. गुल्‍म, 4. गण, 5. वाहिनी, 6. पृतना, 7. चमु, 8. अनीकिनी, 9. अक्षौहिणी। इसी महाभारत युद्ध के बाद गांधारी ने 36 वें वर्ष में यदुवंश के विनाश का शाप कृष्‍ण जी को दिया था। इसी युद्ध के बाद धृत्तराष्‍ट्र और गांधारी 15 वर्ष हस्तिनापुर में 3 वर्ष वन में रहे। अब इस घटना क्रम को यदि हम जोड़े (15+3=18) तो जो संख्‍या हमें प्राप्‍त होती है वह है 18 । इस 18 की संख्‍या का योग 1+8=9 ही आता है। इस प्रकार द्वापर युग की बड़ी घटनाओं  का योग 9 से ही प्रतिफलित होता है। ऐसी ही और भी बहुत सी महत्तपूर्ण द्वापरयुगीन घटनों का जिक्र लेखक ने अपनी पुस्‍तक में क्रमश: किया है।

इससे पहले त्रेतायुग में राम - रावण का युद्ध भी 18 दिनों तक ही चला था। इस 18 की संख्‍या का योग 1+8=9 ही ठहरता है। इसके अतिरिक्‍त लेखक ने श्रीरामचरितमानस् के सुंदर कांड की इस पंक्ति का उल्‍लेख किया है। जिसमें उसके पदम् 18 बंदरों का जिक्र आया है- 'पदुम अट्ठारह जूथप बंदर’ इन 18 बंदरों की संख्‍या का योग 1+8=9 ही ठहरता है। इस प्रकार लेखक ने और भी संदर्भों से नौ की संख्‍या की महत्ता को द्वापर और त्रेतायुग की महान घटनाओं से क्रमश: संबंधित दिखाया है। इस संदर्भ में त्रेतायुग की घटना से संबंधित तुलसीदास की महान कृति 'श्रीरामचरितमानस' में भी नौ वर्णों का होना भी नौ की महत्ता का स्‍थापक है। 'श्रीमद्भगवतगीता' में भी 18 अध्‍याय ही हैं जिनका योग करने पर 1+8=9 ही ठहरता है।


इसी क्रम में योग शास्‍त्र की चर्चा करते हुए लेखक ने मनुष्‍य के शरीर में 72 हजार नाडि़यों और नौ द्वारों की चर्चा की है। लेखक ने स्‍पष्‍टत: दिखाया है कि 72 हजार नाडि़यों की संख्‍या का योग और नौ द्वारों का संबंध 9 की संख्‍या से ही है। नवधा भक्ति का उल्‍लेख भी इसी क्रम में स्‍पष्‍ट किया गया है। इन सभी का जिक्र लेखक ने अपने पांचवे अध्‍याय ‘पुराण/स्रोत/दर्शन/रत्‍न पौराणिक पात्र एवं इतिहास में नौ शिर्षक’ के अंतरगत किया है।

अपने अगले अध्‍याय 'काव्‍य/साहित्‍य/कोष एवं नीति काव्‍य में नौ' के अंतरगत अथक परिश्रम और सच्‍चाई के साथ लेखक ने तथ्‍यों का संग्रह किया। निराला की कलजयी रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ में श्री राम द्वारा शक्ति की आराधना के संदर्भ में भी नौ की संख्‍या के महत्‍व को रेखांकित किया गया है। राम युद्ध में पराजित मनोवृत्ति से उभरने के लिए देवी स्‍तुति करते हैं। इस स्‍तुति को पूर्ण करने के लिए देवी को ‘नौ’ कमल अर्पित करते हैं। किंतु देवी द्वारा राम की परीक्षा के क्रम में एक कमल चुरा लेती है। इस चुराए हुए कमल की पूर्ति हेतु राम अपने नेत्र अर्पण करने को उद्यत होते हैं। जिसपर देवी प्रसन्‍न होती है और उन्‍हें विजय श्री का आशिर्वाद देती है। इस संदर्भ का उल्‍लेख भी लेखक ने अपनी पुस्‍तक में किया है। इसी क्रम में लेखक ने भर्तृहरि की रचना ‘वैराग्‍य शतक’ के अंतरगत आने वाले नौ प्रकार के भय की भी चर्चा की है। विद्या में नौ गुण होते हैं। कोष के संदर्भ में लेखक ने अमरकोश की चर्चा की है। इसी संदर्भ में लेखक ने उपमन्‍यु कृत शिवस्‍तोत की चर्चा की है जिसमें आचार्य उपमन्‍यु ने एक ही श्‍लोक में भगवान शिव के नौ नाम देकर बड़ी सहजता से स्‍मरण किया है-
            जय शंकर! पार्वतीपते! मृड! शंभो! शशिखण्‍डमण्‍डन।
            मदनान्‍तक! भक्‍तवत्‍सल! प्रिय कैलास! दया सुधाम्‍बुधे।।

नीति के संदर्भ में लेखक ने स्‍पष्‍ट किया है कि विद्वान को राजा, धनपति, बालक, वृद्ध, तपोधन, अपने से अधिक विद्वान, मुर्ख, स्‍त्री तथा गुरुजन से विवाद नही करना चाहिए अर्थात् विद्वान को उपर्युक्‍त ‘9’ से विवाद नहीं करना चाहिए । इसी प्रकार शुभाषितों के अंतरगत भी लेखक ने नौ की संख्‍या की महत्ता को रंखांकित किया है। लेखक स्‍पष्‍ट करते हुए लिखता है कि- यति, व्रती, पतिव्रता, वीर, शूर, दयालु, त्‍यागी, भोगी एवं विद्वान की संगति मात्र ही पाप को जला देती है। इन संगतिकारों की संख्‍या भी 9 ही ठहरती है। ऐसे बहुत से संदर्भ प्रस्‍तुत प्रस्‍तक में संदर्भित हैं।

पुस्‍तक के अगले अध्‍याय 'भारतीय राजनीति/क्रीड़ा जगत एवं कुछ विशिष्‍ट घटना चक्र में नौ' में भी 9 की महत्ता को श्रमसाध्‍य ढंग से प्रस्‍तुत किया गया है। भारतीय राजनीति की स्‍मरणीय घटनाओं में लालू पर लगे केस की संख्‍या में भी 9 की महत्ता लेखक ने उजा‍गर की है। लालू यादव पर लगे केस में से 36 के राँची स्‍थानान्‍तरित किए गये। अब इन 36 की संख्‍या  का योग 3+6=9 ही है। इसी क्रम में लेखक ने माधवराव सिंधिया के 9 बार सांसद चुने जाने और अपनी माता के स्‍वर्गवास के ठीक नौ वर्ष बाद मृत्‍युको प्राप्‍त होने का उल्‍लेख भी किया है। इसी क्रम में लेखक ने गोधरा कांड की भी चर्चा की है जैसा कि हमें ज्ञात है गोधरा कांड 27 फरवरी को हुआ था इस सत्ताइस फरवरी की संख्‍या का योग 2+7=9 ही है।

क्रिकेट के संदर्भ में देखें तो क्रिकेट सम्राट के नाम से मसहूर सचिन तेंदुलकर के जीवन की भी बहुत सी महत्त्वपूर्ण घटनाएं नौ की संख्‍या से ही संबंधित है। लेखक ने सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट जीवन के आरंभ वर्ष 1989 ई. की संख्‍याओं के योग में 9 को परिगणित कर 9 की महत्ता को रेखांकित किया है। इसी प्रकार सचिन के नर्वस नाइनटीज की संख्‍या 18 का भी जिक्र किया है जिसका योग 1+8=9 ही ठहरता है।

अगले अध्‍याय 'विविध क्षेत्र/मिली जुली सूचनाएं' में भारत ही नहीं अपितु विदेशों की भी नौ से संबंधित महत्‍वपूर्ण घटनाओं का जिक्र पुस्‍तक में किया गया है। उदाहरण के लिए विश्‍व की सबसे ऊंची इमारत ‘बुर्ज खलीफा’ का जिक्र पुस्‍तक में किया गया है। इस इमारत में 1044 अपार्टमेंट हैं और यह 828 मीटर ऊंची है। इन दोनों ही संख्‍याओं का योग क्रमश: 9 ही है। विश्‍व स्‍तर की घटनाओं के परिप्रेक्ष्‍य में नेल्‍सन मंडेला का जिक्र भी लेखक ने किया है। लेखक नेल्‍सन मंडेला के 18 वर्ष जेल में बिताने और उनके जन्‍मदिन 18 जुलाई में भी 9 की संगति स्‍थापित करता है। भारतीय संदर्भ में आर्थिक क्रांतियों में से एक 9 नवंम्‍बर 2016 की नोटबंदी की घटना हमारे जेहन में अभी ताजा ही है। काला धन से संबंधित यह घटना 9 नवंबर को हुई और नौ की संख्‍या से ही अर्थ संगति रखती है।

निष्‍कर्ष रूप से कहें तो विद्यावाचस्‍पति पं. विष्‍णुकांत शुक्‍ल द्वारा रचित ‘नवयौवनदिग्‍दर्शनम्’ अपने आप में अद्वितीय और भिन्‍न दृष्टिकोण को लेकर उपस्थित होने वाली पुस्‍तक है। इस पुस्‍तक के माध्‍यम से नौ की संख्‍या के महत्त्व की सुंदर चर्चा की गई है। लेखक ने मेरी सीमा/मेरा सामर्थ्‍य अध्‍याय के अंतरगत इस बात की चर्चा भी की है कि बच्‍चों के सामान्‍य ज्ञान में भी प्रस्‍तुत पुस्‍तक के साथ ही पुस्‍तक मनोरंजन का कार्य भी  करेगी। लेखक का स्‍पष्‍ट मंतव्‍य है कि नौ ही एक ऐसी अकेली संख्‍या है । जो सदा जवान बनी रहती है और इसी आधार पर उन्‍होंने अपनी पुस्‍तक का नाम 'नवयौवनदिग्‍दर्शनम्' रखा है। पुस्‍तक का पाठक सत्‍ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग के सृष्टिक्रम और आज वर्तमान समय में भी  ‘नौ’ की महत्ता से परिचित और रोमांचित होता है।
पुस्तक: नवयौवनदिग्‍दर्शनम् ( नौ जवान : एक बानगी )
लेखक: डाँ.विष्‍णुकान्त शुक्‍ल
प्रकाशन: देववाणी-परिषद्, दिल्‍ली, नई दिल्ली- 110059
प्रकाशन वर्ष: 2017
मूल्य: 300/-

 -शशिकान्‍त यादव 
शोधार्थी,
.  गां. अं. हिं. वि.वर्धा (महाराष्‍ट्र)
Mob.9405534505
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