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आरती की दो कविताएं 1. `राजनीति और देश की सेना 2. हैवानियत

  


 
1.  राजनीति और देश की सेना

 

दिल और जान से

सरहदों पर खड़े हैं

सीना अपना तानकर

हिफाजत करते हैं देश की

सैकडों दुश्मन मारकर

हमें सुरक्षित करने के लिए

अपने असुरक्षित रहते हैं

दिन दोपहरिया, रात को

दुश्मन पर

चौकस नज़रे रखते हैं

जो हो जाये तनिक भर चूक

तो अपनी जान गंवा बैठते हैं

अपने घर में सुकून से रहकर

फाइव स्टार होटल में

हम पार्टी खूब मनाते हैं

जब आती है लाशें सेना के घर पर

उसकी बहन, बेटी, मां, पत्नी के दिल पर

आसमान जैसा पहाड़ टूट पड़ता है

हम हैं फाइव स्टार होटल में

और

दूसरा परिवार होता है मातम में

उस समय निःशब्द हो जाती हूँ

जब याद आती है

देश की राजनीति

खौलता है खून

सैनिकों की मौत पर

राजनेता करता है जब राजनीति

लेकिन मैं गौरान्वित महसूस करती हूँ

जब देखती हूँ

रोते हैं देश के लोग

उसकी मौत पर

उत्साहित होता है मन

लहरने लगती है देशभक्ति की तरंगे

देश के तिरंगे की लाज़ बचाने के लिए

अपने जज्बात से

चढ़ा देता है अपना सिर

अपने भारत देश के नाम

इसलिए

शत शत नमन है

ऐसे वीर जवान को।


2.  हैवानियत

बैठे हैं दरिंदे

आबरू नोचने के लिए,

बैठे हैं

जीभ काटने के लिए

ताकि

वह खोल न सके

इनकी काली करतूत की पोल

लूटकर किसी मासूम की इज्जत

करते हैं इंसानियत को शर्मसार

अरे दरिंदों

कुछ तो समझो

अगर चलता रहा इसी तरह

हैवानियत का खेल

तो एक दिन तुम्हारी बहन के

साथ भी खेली जाएगी

आबरू के साथ खेल

लेकिन

तुम्हें किसी की परवाह नहीं है

क्योंकि

तुम इंसान नहीं दंरिदे हो

पता चल रहा है

तुम्हारी दरिंदगी

रोज का हो गया है काम

बना लिए हो धंधा

बलात्कार का

तनिक भर शर्म नहीं है

तुम्हारी आँखों में,

करते हो शर्मसार

मां कि कोख को

क्या इसी दिन के लिए

 मां तुम्हें दुनिया में लाई

 तुम्हारी हैवानियत की करतूत

 तुममें कितनी है भर आई

 एक के बाद एक खबर है आई

तुमने किसी की बहन की

इज़्ज़त धूल में है मिलाई

कैसे हो इंसान तुम्हें शर्म नहीं आई

घर पर आकर तुमने

कैसे मिलाई है आंख अपनी बहन से

उसके आबरू को नोचते हुए

याद किया होता अपनी बहन

की लुटते दामन को

सोचा होता

मेरी बहन की आबरू लूटने के बाद

दरिंदों ने मेरी बहन को नग्न करके

लोगों के बीच घुमा रहे हैं,

सोचा होता उस वक्त तुम्हारी बहन

हताश और निराश होकर

उस दरिंदे के इशारे पर

नग्न होकर चलती है

ऐसा न करने पर बलात्कारी उसे मारते हैं

जरा सोचा होता

उस वक्त तुम क्या करते अपनी बहन को

देखकर इस हालात में

जरा सोचा होता

हर लड़की में

अपनी बहन समझा होता

तो शायद

हिम्मत नहीं होती

किसी की आबरू नोचने के लिए

लेकिन हवस का शिकार हो जाते हो

तुम

तो कभी हो जाती है तुम्हारी बहन

क्योंकि

तुम्हारे हवस में

तुम्हें होश नहीं रहता

की बहन तुम्हारी है

या

किसी और की

कर बैठते हो गलती

क्योंकि तुम इंसान नहीं दरिंदे हो

          आरती (गीतिका)

          रायबरेली, उत्तर प्रदेश









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