हम लोग कश्मीरी हैं। दो सौ बरस से ज्यादा हुए होंगे, 18वीं सदी के शुरू में हमारे पुरखे यश और धन कमाने के इरादे
से कश्मीर की सुंदरता तराइयों के नीचे के ऊपजाऊँ मैदानों में आये। वे मुगल साम्राज्य के पतन के दिन थे। औरंगजेब
मर चुका था और फर्रूखसियर बादशाह था। हमारे जो पुरखा सबसे पहले आये, उनका नाम था
राजकौल। कश्मीर के संस्कृत और फारसी के विद्वानों में उनका बड़ा नाम था। फर्रूखसियर
जब कश्मीर गया, तो उसकी नजर उनपर पड़ी और शायद उसी के कहने से उनका परिवार दिल्ली
आया, जो कि उस समय मुगलों की राजधानी थी। यह सन् 1716 के
आसपास की बात है। राजकौल को एक मकान और कुछ जागीर दी गई। मकान नहर के किनारे था,
इसीसे उनका नाम नेहरू पर गया। कौल जो उनका
कौटुंबिक नाम था बदलकर कौल-नेहरू हो गया और आगे चलकर कौल तो गायब हो गया और हम महज
नेहरू रह गये।
नोट : पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा अपनी आत्मकथा में लिखा है।
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