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अपना स्टेशन आने से पहले जिंदगी की रेल से उतर गए इरफान


न बुढापा आया न जवानी ख़त्म हुई!
कुछ ऐसे मोड़ पे कहानी खत्म हुई!!


भले ही ये शेर किसी ने कैसे भी लिखी हो लेकिन यह जिस शख्स पे एक ठीक बैठती है उस शख्स का नाम है इरफान खान...इरफान अब हमारे बीच नहीं रहे... ... ...    

कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते-बजाते...
पता नहीं जिंदगी के सफर में इरफान से किसी ने कहा हो या नहीं लेकिन इरफान अपना स्टेशन आने से पहले जिंदगी की रेल से उतर गए...अब है तो सिर्फ उनकी यादें।
     
मुंबई के कोकिलाबेन हॉस्पिटल से बुधवार को खबर आई कि अभिनेता इरफान ख़ान अब हमारे बीच नहीं रहे. आम आदमी की भाषा में कहें तो 53 साल के इरफान कैंसर और आंतों के इन्फेक्शन से जूझ रहे थे। उनकी अदाकरी आंखों से सीधे दिल-दिमाग और रूह में उतर जाती थी. इरफान अपने कैरियर में बड़ी बजट की और बड़े स्टारडम की फ़िल्मों विशवास नहीं करते थे। हमेशा वे एक साधारण चरित्र को अपने अभिनय के बल-बूते असाधारन बना देते थे. इरफान हमेशा फ़िल्मों के मामले में चूजी थे। वे बजट और बैनर से ज्यादा अपने अपने अभिनय, स्टाइल और डायलॉग डिलीवरी से सबका मन मोह लिया कारते थे. उनका बोला गया एक डायलॉग बीहड़ में तो बागी मिलते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट मेंदेश की राजनीतिक व्यवस्‍था पर प्रहार करता है. वे एक सक्षात्कार में बताते है "मुझे मेरी क़िस्म की फिल्म चाहिए. मैं अपनी जमीन से हट के दूसरे की जमीन पे नाचूं और ढोल पीटूं, और वो जमीन मेरे पैरों को सपोर्ट न करे, तो उस नाच का मैं मज़ा नहीं ले पाऊंगा।" वे हमेशा अपने फ़िल्मों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाते रहे हैं. इरफान अपनी ज़िंदगी के 54वें साल और अपने 32 बरसों के फिल्मी सफर में इरफान ने करीब 50 से ज्यादा हिन्दी और दस हॉलीवुड की फिल्मों में काम किया है. जिनमें पान सिंह तोमरके लिए तो इरफान खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. साथ ही उन्हें चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला चुका है. जिनमें पान सिंह तोमरके साथ हासिल’, 'लाइफ इन द मेट्रो' और 'हिन्दी मीडियम' शामिल हैं. उनके फिल्मों में किए गए असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार ने इरफान खान को 2011 में पदमश्री से भी सम्मानित किया है. देश विदेश में उन्हें कुछ और भी पुरस्कार मिले.

दो साल पहले मार्च 2018 में इरफान को न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी का पता चला था। तब  दो साल पहले इरफान ने अपने प्रशंसकों और फ़िल्मकारों की तब भी नींद उड़ा दी थी, जब उन्हें पहली बार पता लगा था कि इरफान खान को कैंसर है. वो भी न्यूरोएंडोकाइन नाम का ट्यूमर जो बेहद दुर्लभ होता है.

इरफान अपनी इस को बीमारी जानकार खुद सकते में आ गए थे और उन्होंने इस पर लिखा था कि अच्छी भली ज़िंदगी जब उड़ान भर रही हो तो अचानक क्या हो जाये, यह कोई नहीं जानता. उस वक्त इरफान खान अपने ट्विटर के माध्यम से भी दर्द साझा किया था कि कभी कभी जब आप सुबह उठते हैं तो ज़िंदगी आपको एक झटका देती है. मेरे पिछले 15 दिन एक सस्पेंस स्टोरी की तरह रहे. मुझे नहीं पता था कि दुर्लभ कहानियों को ढूंढते ढूंढते मुझे ही एक दुर्लभ बीमारी मिल जाएगी. लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी है मैं हमेशा लड़ा हूं और आगे भी लड़ूंगा. मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं."


इरफ़ान खान एक संजीदा अभिनेता के साथ एक अच्छे इंसान भी थे. तब उन्होंने ने अजय ब्रह्मात्मज को एक खत लिखा था, वे तब बीमार थे। उसके कुछ अंश: "इस बात को कुछ समय बीत चुका है जब मुझे पता चला कि मैं हाई ग्रेड न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हूं। मेरी शब्दावली में यह नया नाम था। मुझे पता चला कि ये एक दुर्लभ बीमारी है। वहीं इसके इलाज के बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं थी जिसकी वहज से इसके इलाज पर मुझे संदेह भी ज्यादा है। अभी तक मैं तेज रफ्तार वाली ट्रेन में सफर कर रहा था। मेरे कुछ सपने थे, कुछ योजनाएं थीं, कुछ इच्छाएं थीं, कोई लक्ष्य था। फिर किसी ने मुझे हिलाकर जगा दिया। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो टीसी था। उसने कहा आपका स्टेशन आ गया है, कृपया नीचे उतर जाइए। मैं कंफ्यूज्ड था। मैंने कहा- नहीं-नहीं, अभी मेरा स्टेशन नहीं आया। उसने कहा- नहीं आपको अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा।"

इस सारे मामले में इरफान को उनकी पत्नी एनएसडी की दोस्त सुतापा सिकदर ने भी जमकर हिम्मत बंधाई और मजबूती से साथ भी दिया. सुतापा सिकदर ने इरफान को इलाज़ के लिए लंदन तक  लेकर गईं और एक साल सुतापा इरफान के साथ रहकर लंदन में महंगे से महंगा इलाज़ कराती रहीं और खुशी-ख़ुशी फरवरी 2019 में इरफान ठीक होकर मुंबई वापस आ गए और अपने काम में पहले कि तरह जुट भी गये लेकिन क्या पता था कि वह खुशी भी क्षणिक है.

आपको बता दें कि सुतापा सिकदर और इरफान दोनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दिनों में एक ही बैच में साथ-साथ पढ़ते थे और 23 फरवरी 1995 में दोनों ने शादी कर ली थी. सुतापा सिकदर इरफान के पुराने संघर्ष के दिनों से ही उनके साथ थीं. साथ खड़ी रहती थी. ऐसा नहीं था कि इरफान की सफलता के बाद वह उनकी जीवन संगिनी बनी थीं. वह उनकी पत्नी ही नहीं अच्छी दोस्त भी थीं. उनके परिवार में पत्नी सुतापा और दो बेटे बाबिल और अयान हैं.

इरफान का जन्म 7 जुलाई 1967 को जयपुर के एक कारोबारी पठान परिवार में हुआ था। उनके वालिद यासीन अली खान टायर का बिजनेस करते थे. मूलरूप से उनका परिवार टोंक के पास एक गांव का रहने वाला है। और यहां के ही एक स्कूल से इन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की थी. उन्होंने अपने अभिनय के कैरियर की शुरुआत जयपुर के रवींद्र मंच से की थी. इरफान की शुरुआती पढ़ाई जयपुर में ही हुई। उन्हें कुछ वक्त तो पढ़ने में मन लगा। बाद में सारा ध्यान उनका अभिनय की तरफ हो गया।उनके साथी और रिश्तेदार बताते हैं कि वे बचपन से काफी शर्मीले थे। लेकिन बगावती फितरत उनके अंदर बचपन से ही थी. इरफान को बचपन में क्रिकेट खेलने का शौक था। वे जयपुर के चौगान स्टेडियम में क्रिकेट खेलने जाया करते थे। इसके चलते उनका चयन सीके नायडू ट्रॉफी के लिए भी हो गया था और वे क्रिकेटर ही बनना चाहते थे। इसके बावजूद उनके परिवार ने उन्हे क्रिकेट में करियर बनाने की इजाजत नहीं दी। फिर इस तरह मेरा क्रिकेट छूट गया। और थिएटर से जुड़ गये. जब ये अपनी पोस्ट ग्रेजुएश एम.ए. में कर रहे थे, तो उस समय इन्होंने दिल्ली में स्थिति एक्टिंग सिखने के लिए सन् 1984 में तब दिल्ली आ गए और  नेशनल स्‍कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया था. जयपुर में नाटक की बारीकियां सीखने के बाद इरफान दिल्ली चले आए थे. ग्रेजुएशन के साथ ही उन्होंने एक्टिंग की तरफ भी ध्यान देना शुरू कर दिया था. पहले कुछ नए कलाकारों के साथ एक्टिंग सीखने की कोशिश करने लगे. फिर उनकी मुलाकात नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के एक शख्स से हुई। जो कॉलेजों में जाकर नाटक किया करते थे। इरफान भी उनके साथ उनकी टीम में शामिल हो गया और स्टूडेंट्‍स के साथ कॉरिडोर में, क्लासरूम में और कैंटीन में ड्रामा करते हुए ही एक्टिंग के प्रति उनकी समझ बढ़ी और वे इस दिशा में करियर को लेकर गंभीर हुए। दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने इरफान के एक्टिंग को निखारा था. इन्होंने इस ड्रामा स्कूल में पढ़ाई करने के लिए स्‍कालरशिप के लिए आवेदन किया था और इनकी ये आवेदन स्वीकार कर ली गई थी, सन् 1987 में एनएसडी से पास इसके बाद यहां से वे मुंबई चले गए।  
           
मुंबई पहुचने के बाद जल्द ही इन्हें वहां इन्हें सीरियल में काम मिल गया, जिनमें चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहां हमारा, चंद्रकांता, जैसे सीरियल भी थे. साथ ही उसी वक्त चर्चित फ़िल्म निर्देशक मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बेभी इरफान को काम मिल गयी और इसी के साथ उनका फिल्मी सफर 1988 में आरंभ हो गई. लेकिन उन्हें 'मकबूल' फिल्म से शोहरत की बुलंदिया छूने का मौका मिला. इरफान ने हर एक तरह की फ़िल्मों में काम की जिसमें इरफान ने कभी सहायक भूमिकाओं तो कभी नेगेटिव भूमिक तो कभी नायक के रूप में एक से एक खास फिल्म देकर खुद को एक सम्पूर्ण और सशक्त अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया था और लोगों दिल दिमाग पर अमित छाप छोड़ गये.


इस सब के बावजूद इरफान ने अपनी ज़िंदगी की लड़ाई बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ी. लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं डर कचोट रहा था। यह जानलेवा बीमारी उनकी जान ही न ले ले  तभी उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर भी आखिरी बार 12 अप्रैल को अपनी अंतिम फिल्म अंग्रेजी मीडियमका एक संवाद लिखा था –“इंसाइड आई एम वेरी इमोशनल, आउटसाइड आई एम वेरी हैप्पी.जो उनके दिल की हकीकत भी बताता है कि वह बाहर से चाहे मजबूत दिखते हैं लेकिन भीतर से वे बेहद भावुक और खोखले हो गये थे वास्तव में इरफान बेहद संजीदा इन्शान थे और वे लगातार पढ़ते-लिखते रहते थे और समाज की समस्याओं से खुद को कनेक्ट करते थे। उन्‍होंने अपने भीतर की सामाजिक चेतना और अपने उत्तरदायित्व को कभी मरने नहीं दिया. इरफान ऐसा मानते थे कि देश की सामाजिक व्‍यवस्‍था लोगों को आपस में बांटने वाली है और इसे खत्‍म करना जरूरी है. इरफान ने वर्ष 2014 अपने प्रदेश की राजधानी जयपुर चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत की थी. जिसमें इरफान ने देश में दलित और पिछड़ी जातियों के भीतर का जो आक्रोश और राजनीतिक दलों के लिए ये महज़ वोट बैंक का हिस्‍सा है और इन्हें कैसे कला, साहित्‍य और फ़िल्म  मध्यम से इनके अधिकार के सवाल को उठाई और दिलाई जा सकती है जिसे उन्होंने बतया भी था इस गंभीर विषय पर अपने विचार उन्‍होंने अपने चिर-परिचित और बेहद सुलझे हुए अंदाज में कहा था कि गैरबराबरी को खत्म करना बेहद जरूरी है और वे मानते थे की युवा पीढ़ी में चेतना जाग चुकी है. इस संघर्ष का व्यापक रूप भी नजर आने लगा है.  इरफान ने तब ओमप्रकाश वाल्मिकी की कविताएं सदियों का संतापऔर वो मैं हूंभी सुनाई थीं.

जब जब इरफान लंदन से ठीक होकर भारत लौटने थे तो वे अपनी फ़िल्म फिल्म अंग्रेजी मीडियमकी लगातार शूटिंग की और जल्द ही फिल्म को पूरा भी कर लिया था. उन्हें अपनी फ़िल्म अंग्रेजी मीडियमसे बहुत उम्मीद थी. यह उनकी गम्भीर बीमारी से ठिक होने बाद की पहली फ़िल्म जो अब अंतिम फ़िल्म भी साबित हुई इसलिए इसेसे और उन्हें भी बड़ी सफलता की उम्मीद थी लेकिन इरफान खुद कहा था कि सिर्फ इंसान गलत नहीं होते, वक्त भी गलत हो सकता है। थीक ऐसा ही हुआ इरफ़ान, उनकी फ़िल्म और उनके परिवार के साथ उनकी अंतिम फ़िल्म फिल्म अंग्रेजी मीडियम के साथ। असल में जब 13 मार्च को यह फिल्म प्रदर्शित हुई तब कोरोना का कहर के करण देश में सिनेमाघर बंद होते चले गए. बाद में पूरे देश में ही लॉकडाउन गया और सब कुछ ठहर ही गया. इससे यह फिल्म सिर्फ महज 10 करोड़ का ही बिजनेस कर पाई. इससे इरफान को काफी निराशा हुई। साथ ही फिल्म अंग्रेजी मीडियम की पूरी टीम को चूंकि इसके पहले इरफान की फिल्म हिंदी मीडियम ने अच्छी कमाई की थी. यह भी कहा गया था कि जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा तो फिर से सिनेमा खुलेंगे तब इस फिल्म को फिर से रिलीज किया जाएगा. लेकिन अब अंग्रेजी मीडियमइरफान की अंतिम फिल्म बनकर रह गयी है. साथ ही यह वह फिल्म भी साबित हुई है जिसके बाद देश में अभी तक लकडाउन के बाद कोई और फिल्म प्रदशित नहीं हो हुई है.

आप को यह भी बता दें कि इरफान खान इस फ़िल्म के प्रमोशन और ट्रेलर लॉन्च पर खुद नहीं पहुंच सके थे। तब उन्होंने एक ऑडियो मेसेज भेजकर सभी को संबोधित किया था. इससे यह आभास हो गया था कि इरफान भले ही ठीक होकर फिर से शूटिंग तो कर गए लेकिन उनकी तबीयत अभी भी ठीक नहीं हुई है. उनके उस संदेश में उनकी जानदार आवाज़ और शब्द आज भी दिमाग में गूंजते हैं.

इरफान ने अपने संदेश में कहा था- भाइयो बहनों नमस्कार मैं इरफान. मैं आज आपके साथ हूं भी और नहीं भी. खैर ये मेरी फिल्म अंग्रेजी मीडियममेरे लिए बहुत खास है. यकीन मानिए ये मेरी दिली ख्वाहिश थी कि अपनी इस फिल्म को मैं उतने प्यार से प्रमोट करूं जितने प्यार से इसे बनाया है. लेकिन मेरे शरीर के अंदर कुछ अनवांटेड मेहमान बैठे हुए हैं, उनसे वार्तालाप चल रहा है. देखते हैं किस करवट ऊंट बैठता है. जैसा भी होगा आपको इतला कर दी जाएगी."

इतला तो अब मिल ही गयी कि शानदार अभिनेता इरफान अब इस दुनिया में हमारे साथ नहीं है तो उनकी यादें ...

आप को बतादें यह उनके परिवार को एक सप्ताह में लगा दूसरा बड़ा झटका है. 95 वर्षीय उनकी मां सईदा बेगम का मात्र चार दिन पहले ही जयपुर में इंतकाल हुआ था. अभिनेता कोरोना वायरस से निपटने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के कारण अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाये थे. इसका दर्द भी उन्हें था।

इरफान की वो यादगार हिन्दी फिल्मों में मकबूल, क्रेजी -4, लंचबॉक्स, बिल्लू, सात खून माफ, मदारी, तलवार, जज़्बा, साहिब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न, गुंडे और पीकू, लाइफ ऑफ पाई, द नेमसेक, स्लमडॉग मिलेनियर, पान सिंह तोमर, हासिल, लाइफ इन अ मेट्रो, मकबूल, ये साली जिंदगी, हैदर द नेमसेक, द अमेजिंग स्पाईड़रमैन, जुरासिक वर्ल्ड और हिस्स प्रमुख हैं.

इस प्रकार इरफान का करियर दिन प्रति दिन सफलता के नये सोपान स्थपित कर रहे थे। उन्हें अगर वक्त ने थोडा और वक्त दिया होता तो वो देश और दुनिया को अभिनय की एक नया आयाम दे गये होते. 
-santosh k yadav
Advocte, Supreme Court of India
New Delhi


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