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मोदी का विरोध कोई नेता क्यों नहीं कर रहा हैॽ कारण (ॽ)

मनुष्‍य के चार पुरूषार्थ बताए गए हैं। अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। इस सूत्र से हम मोदी के चक्रव्‍यूह को समझने की कोशिश करते हैं। पहले इस सूत्र को समझते हैं। अर्थ- लेबर क्‍लास। काम- मीडिल क्‍लास। धर्म- व्‍यवसायी वर्ग। मोक्ष- बड़े-बड़े नेता।

एक बार मध्‍य प्रदेश के एक सांसद के साथ बैठा हुआ था। उन्‍होंने बातों-बातों में ही कहा कि नेता की खाल मोटी होती है। उनपर ऐसी वैसी बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता। 






अब इसकी गहराई में चलते हैं। अमूमन आम सोच विचार वाला एक आदमी यही सोचता रहता है कि नरेन्‍द्र मोदी का कोई विरोध क्‍यों नहीं कर रहा हैॽ लोग सड़क पर क्‍यों नहीं उतर रहे हैंॽ 

                                                   SELF DEFENCE       

हमरा असली मुद्दा भी यही है। इसको समझने के लिए एक घटना की चर्चा जरूरी है। जब अमर सिंह सपा के महासचिव थे। कोई भी घटना घटते ही तुरंत प्रतिक्रिया दे देते थे। चाहे वह देश दुनिया का कोई भी मुद्दा हो। लेकिन जब उनको सपा से निकाला गया, तब तक काफी कुछ उनकी राजनीतिक समझ बदल चुकी थी। सपा से निष्‍कासन के कई साल बाद दीपक चौरसिया के एक इंटरव्यू में पधारे थे। एक सवाल के जवाब में कहा कि कभी किसी बड़े नेता के बारे कुछ नहीं बोलना चाहिए। 

अब मोक्ष क्‍लास में अमर सिंह के इस बयान का पोस्‍टमार्टम करते हैं। जो नेता शिखर पर होते हैं, अध्‍यात्‍मिक रूप से वे मोक्ष के अधिकारी होते हैं। यानी उनपर किसी भी तरह के मोह माया का प्रभाव-दबाव जल्‍दी नहीं पड़ता। मतलब कि ऊपर वाले सब भाई-भाई हैं। वे बड़ी-बड़ी घटनाओं में भी विचलित नहीं होते हैं। इस श्रेणी के जितने नेता होते हैं। वे सब आपस में एक दूसरे को गुप्‍त तरीके से मदद करते हैं। सत्‍ता में आना-जाना या चुनाव हारना-जीतना वे किस्‍मत का करिश्‍मा मानते हैं। अपनी चुनावी जीत-हार के कारण-निवारण को वे ज्‍योतिषियों से समझ लेते हैं। उदाहरणस्‍वरूप पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्‍हा राव ज्‍योतिष में अटूट विश्‍वास रखते थे और जब हवाला घोटाले में उनपर सीबीआई जांच कर रही थी तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कोर्ट को उनके घर पर ही भेज दिया था। ऐसे ही मोक्ष क्‍लास के लोग एक दूसरे को सहयोग करते रहते हैं।

दूसरा उदाहरण 1977 का है। पूरा देश कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विरोध में सड़क पर उतरा हुआ था। जयप्रकाश नारायण उसका नेतृत्‍व कर रहे थे। आम लोगों का उनमें पूरा विश्‍वास था। लेकिन जब सम्‍पूर्ण क्रांति सफल हो गई तब उनको अपने बड़े भाई की बेटी की याद आ गई। और वे अपने बड़े भाई की बेटी से मिलने चले गए। जयप्रकाश नारायण के बड़े भाई की बेटी इंदिरा गांधी ही थी। इंदिरा गांधी से मिलकर उन्‍होंने पूछा अब तुम्‍हारा खर्च कैसे चलेगाॽ इंदिरा गांधी ने कहा कि पिता जी की किताबों की रायल्‍टी मिलती है। इस मुलाकात के दो साल बाद ही सम्‍पूर्ण क्रांति की हवा निकल गई और इसके बाद लगातार 25 साल तक क्रांगेस एकछत्र राज करती रही। 

  तेरी बेवफाई का शिकवा करूं तो  मेरी मोहब्‍बत की तौहीन होगी...    
इन तीनों उदाहरणों से आप मोक्ष क्‍लास की मानसिकता को समझ गए होंगे। उनके आपसी बात व्‍यवहार को भी जान गए होंगे। उनका सार्वजनिक विरोध केवल राजनीतिक एजेंडा होता है। कोई दुश्‍मनी नहीं। वैसे भी भारत के सभी राजनीतिक पार्टियों के विचार और व्‍यवहार लगभग एक जैसे ही हैं। केवल उनके झंडे का रंग अलग है।





अब हम उपर के तीनों घटनाओं के परिणाम पर बात करते हैं। जब मोक्ष क्‍लास यानी सर्वश्रेष्‍ठ नेता एक दूसरे के सहयोग में आ जाते हैं तब दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे पायदान के नेता अमर सिंह जैसे बेकार के साबित होते हैं। वे अपने को ठगा महसूस करते हैं। जैसे अमर सिंह ने सबक सिखा कि किसी भी बड़े नेता के विरोध में कुछ नहीं बोलना चाहिए। यही कारण है कि दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवे पायदान के नेता मोदी के विरोध में कुछ भी बोलने या करने से बचते हैं। चाहे वे किसी भी पार्टी के हों। वे जानते हैं कि सभी पार्टियों के मोक्ष क्‍लास के नेता भाई-भाई हैं। या वे आपस में कोई न कोई रिश्‍ता ढूढ ही लेंगे। जैसे सम्‍पूर्ण क्रांति में जयप्रकाश नारायण ने अपने बडे भाई की बेटी को ढूढ लिया था और सम्‍पूर्ण क्रांति फुस्‍स हो गई थी। कसम से... ... ... अब आपको खुश रहना चाहिए।
-संतोष कुमार 
                      धिवक्‍ता, सुप्रीम कोर्ट 





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