POLITICS

[POLITICS][list]

SOCIETY

[समाज][bleft]

LITARETURE

[साहित्‍य][twocolumns]

CINEMA

[सिनेमा][grids]

मेरी माँ ने मुझे भर आँख देखा होता : रेशमा प्रसाद



1.

 मैं किन्नर हूं  

मेरे अंदर का दर्द अंदर ही है
जब मेरी पहचान बाहर हो
समलैंगिकों को भी है दर्द हमसे
वह सोचते कि मेरी पहचान सही
मैं बिस्तर पर ना जाऊं तो दुनिया
मुझे पहचान ना पाए मैं हूं कौन
तुम्हें तो बहुत दूर से पहचान लेते
तुम हो कौन जो हम सबसे अलग
मगर मुझे तलाशती तुमसे भी
तुम्हारे दो शब्द सम्मान के,
कभी तो आए तुममे ये जहर बांटा किसने
जो तुम अपनों को पहचान ना पाते
समलैंगिक और किन्नर में जब होती
बातें तो निकलते दर्द ही दर्द की बातें
तौलते समाज के पैमाने पर
वे कहते मेरी इज्जत है समाज में
मैं जब तक बिस्तर पर जाकर
अपनी पहचान को सामने ना लांऊ
यह जो बिस्तर पर जाने की ललक
तुम्हारी वह हर एक जांघ पर हाथ
डालने को तस्दीक कर जाती
पर वो ताने कसते तुम्हारी इज्जत किधर
तुम्हें लोग ताने देते तुम्हें लोग दुत्कार देते
बहुत खुश होते तो कहते थोड़ी
कमर तो हिला और उसके साथ
अपनी जेब से नोटों की गड्डियां
हिला देते क्या यही है हमारी किस्मत
क्या यही है हमारी कीमत
जीने के लिए हम क्या ना करती है
जीना भी क्या जीना है जो मरने से भी
दुश्वार बरसों से हमने अपनी पहचान
बदलने की ठानी कब उजाला आएगा
जब हमें वो सम्मान के बोल, बिना औरत
बिना आदमी बिना किन्नर कहे आसान हो
इंसानियत क्या जागेगी आपके दिलों की
हमारे दिल तो पत्थर हो जाती
चंद दो मीठे बोल के लिए
रोटी के चंद टुकड़ों के लिए
हमें रोटी भी सकून से ना मिलती
हमने घर भी छोड़ा मां भी छोड़ा
बाप भी छोड़ा छोड़ दी वो गलियां
उन दोस्तों को छोड़ा पर हमें ना मिली
हमारी पहचान , मैं किन्नर हूँ.

Symbol

2.

 मैं किन्नर हूँ   

मेरी पहचान मेरी माँ
मैं तुमसे दूर हो गई
यह, मेरा कसूर नहीं
मेरा दिल नहीं करता
मैं तुमसे दूर दुनिया में जाऊँ
हर माँ अपने बच्चे को प्यार
दिल में रख कर करती
हे माँ, तुझे विचारना होगा
मर्द को मर्द ना बनाओ
औरत को औरत ना बना
एक अच्छा इंसान बना दो,
हे माँ,
तेरे आँचल का प्यार
तेरी ताकत यह दुनिया बदल दे,

दुनिया ने उलझी ऱीत बनाई
तूने भी उलझी रीत चुनी,
माँ कहती कि तू आँखों में
काजल क्यों लगाए तू मर्द है
माँ कहती कि तेरा ये सजना
ये सँवरना ठीक नहीं तू मर्द है
माँ कहती
गुड्डे गुडियों से खेलना
तुझे जीने नहीं देगा
हे माँ,
तुझे पहचान को मेरी
स्वीकारना होगा
लड़ना होगा
समाज की बेड़ियों ने मेरी माँ के
ममत्व को गला घोंट मार डाला आह,
मेरी माँ ने मुझे भर आँख देखा होता,
जो प्रसव पर दर्द सहा
क्या उस पीडा़ पर भी बेटा
या बेटी पहचान लिखा होगा?

एक माँ बनने की खुशी आई
उन खुशियों को बेटा
या बेटी ही में न बाँटो
ना सोचो कि मुझे बेटे की खुशी
ना सोचो कि मुझे बेटी की खुशी
सोचो एक इंसान जनने की खुशी
जो उलझी रीत बनाई दुनिया ने
सुलझा लो माँ,
मेरी पहचान तुमसे दूर ले गई
हे माँ, तुझे समाज की जकड़न को तोड़नी होगी,
हे माँ, तुझे उन बेड़ियों को काटना होगा,
वो महान माँ जो बेड़ियों को तोड़ी
उन महान माँ को सलाम करती हूँ

मैं उनके जज्बे को सलाम करती हूँ
उनके अपने माँ होने को सलाम करती
उनके माँ के प्यार को सलाम करती हूँ।
 -रेशमा प्रसाद 



Post A Comment
  • Blogger Comment using Blogger
  • Facebook Comment using Facebook
  • Disqus Comment using Disqus

No comments :