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अंगीरा चौधरी के आरोपों का प्रतिउत्तर : धर्मवीर यादव गगन





आदरणीय तुलसी राम की पहली पत्नी राधादेवी के सार्वजनिक हो जाने के बाद उनकी पुत्री अंगीरा चौधरी ने राधा देवी के नाम खुला पत्र लिखा हैl इस पत्र में उन्होंने राधा देवी के बजाय मेरा अर्थात् धर्मवीर गगन का अधिक उल्लेख किया है और मुझ पर कई सारे मर्माहत करने वाले आरोप लगायें हैंइस कारण मुझे इसका उत्तर देना पड़ रहा हैl ... मुझे कभी-कभी यह भी लग रहा है कि यह पत्र गलत पते पर चला आया है
यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ कि पेरियार ललई के साहित्य और चिंतन की खोज में मुझे दिल्ली से कानपुर, झाँसी, ग्वालियर, मुरैना, भिंड, चम्बल, नागपुर, भंडार, वर्धा, औरंगाबाद, मुंबई आदि जगहों पर जाना हुआ थाl 26 दिन बाद दिल्ली पहुँचाl उसी शाम मुझे पुनः कानपुर के लिए निकलना पड़ाl इन व्यस्तताओं के कारण मैं समय से जवाब नहीं दे सकाl सॉरी! साथ ही, मैं यह कोई खुला या बंद पत्र नहीं लिख रहा हूँ वरन ‘आरोपों’ का प्रतिउत्तर दे रहा हूँl
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सबसे पहले आप सब इस लिंक https://youtu.be/UFr02tbCCNk पर राधा देवी का इंटरव्यू एक बार ध्यान से सुनियेl इस इंटरव्यू के आने के बाद #justiceforradhadevi की मुहिम शुरू हुईl जिसमें भूखमरी की शिकार राधादेवी के समर्थन में लोगों ने मुख्य दो माँगे की–
1. भूख से मर रही राधादेवी को तुलसी राम की आधी पेंशन दी जायl
2. मुर्दहिया और मणिकर्णिका आत्मकथा की आधी रॉयल्टी दी जायl
इन सवालों के जवाब में अंगीरा चौधरी ने राधादेवी के नाम खुला पत्र लिखाl ध्यान रखिए कि इस पत्र को लिखवाने के लिए पत्रकार संजीव चंदन ने सबसे पहले अंगीरा चौधरी से संपर्क कियाl उसके बाद उन्होंने इसे 'स्त्रीकाल' की वेब साईट पर लगायाl एक जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात ध्यान रखने की है- संजीव चंदन ब्राह्मण हैं, जाति से मिश्रा, उस पर भी 'गया' बिहार सेयह बात मैं प्रतिगामी ब्राह्मणों के लिए लिख रहा हूँl कृपया प्रगतिशील ब्राह्मण/सवर्ण इस बात पर ध्यान न देंl मैं उनका आदर और सम्मान करता हूँl मै बुद्ध, अश्वघोष, दिगनाद, सारी पुत्र, राहुल सांकृत्यायन को कैसे भूल सकता हूँ| 

आप ध्यान रखिए कि अंगीरा इंग्लिश मीडियम से पढ़ी-लिखी हैंl पत्र के गठन, गद्य और भाषा से यह भी जान पड़ता है कि इसे अंगीरा ने कम, उस ईडियट पत्रकार ने अधिक लिखा हैl आपको इसकी एक बानगी दूं तो उस ईडियट पत्रकार ने फेसबुक वाल पर एक पोस्ट लिखा था, जिसमें वो लिखता है कि "तुलसी राम ने बाल-विवाह से विद्रोह किया थाl" यह बात इस पत्र में हू-ब-हू रखी गयी हैl आप उस ईडियट पत्रकार की फेसबुक वाल की कुछ पोस्ट पढ़ लीजिए उसके बाद आप पूरा पत्र पढ़िए| आप स्वतः जान जायेंगे कि पूरा पत्र किसने लिखा है| वैसे आप सोचिए जो महिला पूर्णत: निरक्षर हो, सोशल साईट, इंटरनेट से जिसका कोई लेना देना न होl इंटरनेट की दुनिया से जिसकी अलग दुनिया हो, उसके लिए खुला पत्र लिखना/लिखवा देना किस बात का परिचय देता हैl आखिर यह पत्र किसके लिए लिखा गया है| एक डेंजरस मन की नस्लीय मानसिकता रखने वाले उस ईडियट पत्रकार पर नजर रखते हुए; आईए पूरे प्रकरण को देखते हैंl पहले आप अंगीरा चौधरी का निम्नलिखित पत्र पूरा इस लिंक http://www.streekaal.com/2018/02/letter-to-Radhadevi-by-the-daughter-of-Tulsiram.html पर पढ़िएl

मेरा प्रतिउत्तर... 
1. इस पत्र में राधा देवी का उल्लेख 9 बार और  मेरा उल्लेख 11 बार हुआ हैl जबकि यह पत्र राधा देवी के नाम हैl मुझे स्पष्ट महसूस हो रहा है कि यह पत्र गलत पते पर आ गया है|
2. इस पत्र के संपादक ने हेडिंग लगाई है कि 'एक शोधार्थी पर उठाई उंगली’ जबकि उस शोधार्थी ने 'सोशल मिडिया' पर आदरणीया राधा देवी के सन्दर्भ में कभी कोई पब्लिक पोस्ट नहीं लिखीl हाँ इतना जरूर है कि मानवीय आधार पर शोधार्थी ने #justiceforradhadevi करके कुछ जगह कॉमेंट जरूर कियाl
3. पत्रकार संजीव चंदन ने हेडिंग में लिखा है कि "अंगीरा चौधरी को भी कठघरे में खड़ा किया जा रहा है. कहा यह भी जा रहा है कि वे फोन नहीं उठा रही हैं." मै आप सबको बता दूँ कि मैंने राधादेवी प्रकरण में अंगीरा चौधरी को एक बार भी फोन नहीं कियाl
4. पत्रकार संजीव चंदन आगे लिखते हैं कि "स्त्रीकाल ने उनसे संपर्क किया" अर्थात् स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन हैंl राधादेवी के सन्दर्भ में अंगीरा चौधरी से सम्पर्क की मनसा समझिएl जो दलित पहले पहल दलित महिला का सवाल उठा रहे हैं उन्हें प्रतिगामी ब्राह्मण "कथित षड्यंत्रकारियों" के रूप में सम्बोधित करते हुए उनसे ‘सावधान’ रहने की सलाह दे रहा है और खुद क्या किया आप स्वयं सोचिए! दरअसल, "षड्यंत्रकारियों" सम्बोधन में उसकी हजारों सालों से बहुसंख्यकों को लड़ाने-भिड़ाने वाला मन और नस्लीय नफरत वाली अदा साफ़ झलकती है
5. राधा देवी की यूट्यूब पर वीडिओ आने के बाद, आप (अंगीरा चौधरी) लिख रही हैं- 'एक दो मेरे बहुत करीबी लोगों को छोड़कर अपने-पराये किसी ने भी इस सन्दर्भ में मुझसे संपर्क नहीं किया..." 13 फरवरी, 2016 को मुर्दहिया, धरमपुर, आज़मगढ़ में आप राधा देवी से मिल चुकी थींl आपके ही पचासों उपस्थित लोगों के साथ मैं भी पहली बार वहीं पर राधा देवी को देखाl चूँकि मैं जानता था कि आप दो साल पहले अर्थात् 13 फरवरी, 2016 को राधा देवी से मिल चुकी हैंl इस कारण 13 फरवरी, 2018 को आयी इस वीडियो के संदर्भ में आपको कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझाl
6. आगे आपने लिखा है कि "आपके (राधा देवी) आशीर्वाद के शब्द मुझे याद हैं। जा बेटी जहें रहिय, खुश रहिय या ऐसे ही कुछ शब्द।" आपने आदरणीया राधा देवी की अंतिम बात लिखी हैl आपको शुरुआत से लिखना चाहिए थाl आपको यह भी लिखना चाहिए था कि जब आपको खंडहर हो चुके घर को दिखाना शुरू किया गया तो सबसे पहले आपको घर के अन्दर ले जाया गयाl आपके साथ घर के अंदर लगभग पचासों महिलायें घुसींl आप जब अंदर खाट पर बैठीं तब कुछ महिलाएं आपके सामने आपको घेरे खड़ी रहींl आपको गर्मी न लगे इसलिये वे महिलाएं हाथ पंखा चलाने लगींl आपके ठीक सामने सफ़ेद साड़ी पहने एक महिला बैठी थी जो आपको एकटक देख रही थी


        घर में अंगीरा चौधरी के साथ राधा देवी     

देखते देखते वो वृद्ध महिला खुद को रोक नहीं पाई और तपाक से बोल पड़ी- "लूआ हम तूहार माई हईं" इस पर वहाँ उपस्थित महिलायें और सभी लोग हक्का-बक्का हो गएl दूसरे ही क्षण उपस्थित महिलाओं ने सफ़ेद साड़ी पहनी राधा देवी को डाँटा कि "चुप रहा इहाँ ई सब मत बोलाl" और आप राधा देवी को भौचक देखती रहींकुछ पल बाद और सारी बातें शुरू हो गयींl अंगीरा चौधरी का उपनाम लूबा हैl जिसे राधा देवी ने लूआ के रूप में संबोधित किया थाl आपको यह भी लिखना चाहिए था कि जब मुझे खंडहर हो चुके घर को दिखाया जा रहा था तब मैं सबसे आगे आगे और राधा देवी सबसे पीछे पीछे चल रही थींl बिल्कुल उपेक्षित घूम रही थींl उन्हें कोई नहीं पूछ रहा थाl और नहीं तो दुःखी मन से पीछे पीछे चल रही राधा देवी को उसी घर की महिलाएं कोसते हुए कह रहीं थीं कि 'आप को यही समय मिला है यह सब कहने कोl' आपको यह भी लिखना चाहिए था कि जब घर का कुँआ आदि दिखाया जा रहा थाl कुएँ की जगती पर फ़ोटो खिंची जा रही थी तब सहमी-डरी राधा देवी दूर खड़ी थींl उन्हें गगन ने बुलाया और कहा कि आप भी आईए आप इसी परिवार की सदस्य हैंl तब वो आईंl और आपके बगल में खड़ी हुईं



उसके पहले उन्हें कोई नहीं पूछ रहा थाl सच तो यह है कि उस हँसते माहौल में राधा देवी जैसे लाचार भार की तरह थींl वह उस माहौल में पूर्णतः उपेक्षित थींl आपने पता नहीं ध्यान दिया कि नहीं कई बार राधा देवी रोते-रोते अपने आँसुओ को पी गईंl आपको उनकी अंतिम इच्छा पर भी लिखना चाहिए थाl मैंने इस सन्दर्भ में उनसे दबी जबान में पूछा था कि आप लूबा के साथ दिल्ली जाना चाहेंगीl इस पर उन्होंने कहा कि "हम लूआ के साथे दिल्ली जायल चाहत हईंl लूआ क बिआह देखल चाहत हईंl" अर्थात् मैं लूबा/अंगीरा चौधरी के साथ दिल्ली जाना चाहती हूँl लूबा की शादी देखना चाहती हूँl ...खैर यह सब उन्हें मयस्सर होगा की नहीं पता नहीं! 





7. आपको कार्यक्रम के पारिवारिक आयोजकों मुख्यरूप से आदरणीय तुलसी राम सर के छोटे भाई सुरेश कुमार की पत्नी मीना देवी जो लगभग 12 साल पहले विधवा हो गईं थीं, और आपके अंकल जिनका आपने पत्र में नाम नहीं लिखा है, इस कारण यहाँ मैं भी नहीं लिख रहा हूँ, से एक बार पूछना चाहिए था कि इस भयानक गरीबी में आप लोग इतना अच्छा कार्यक्रम कैसे करा रहे हैं? वो लोग इस कार्यक्रम के लिए पाँच हजार रूपये खर्च किए थेl ढाई हजार विधवा मीना कुमारी और ढाई हजार अंकल जी ने दिया थाl इस कर्ज को उतार ने में एक साल लग गयाl आपको यह भी बता दूँ कि उसके कुछ समय बाद वह विधवा महिला लिवर कैंसर से तड़प तड़प कर मुर्दहिया में मर गई लेकिन दिल्ली से एक पैसा भी नहीं मिला, दिल्ली से मतलब आप नहीं तमाम बहुसंख्यक चिंतक स्कॉलर-प्रोफेसर, दलित एक्टिविस्ट, अम्बेडकराईट का यहाँ सन्दर्भ हैl और ऐसा भी नहीं है कि लोगों को जानकारी नहीं थीl BHU हॉस्पिटल में उन्हें रामबचन यादव 'सृजन' ने भर्ती कराया था



उनकी छोटी बेटी पूरी बहादुरी और साहस के साथ कैंसर और गरीबी के बीच लड़ते हुए अपनी माँ के ऑपरेशन के लिए पैसों के जतन में लगी हुई थी| ‘बहुजन वैचारिकी’ पत्रिका से नम्बर लेकर उसने मुझे फोन किया— ‘भईया आप मुर्दहिया आये थे| मैं वहीं से बोल रही हूँl मेरी माँ को लिवर कैंसर हो गया BHU में भर्ती है, भईया पैसे नहीं हैं... फफकते हुए रोने लगीl’ मैं बस इतना ही कह पाया—‘घबराओ मतl सब ठीक हो जायेगाl’ उसके 4 दिन बाद ऑपरेशन होना थाl मैंने 12 हजार रुपये भेज दियेl पुनः दूसरे दिन कैंसर पीड़ित महिला ने स्वयं फोन से बहुत धीमी आवाज में मुझे आशीर्वाद दिया| वो भावुक हो गईं| और रोने लगीं| मुश्किल से थोड़ी देर और बात हुईl मैंने अभिवादन किया, आराम करने को कहते हुए फोन रख दियाl गाँवों में आज भी मनुष्यत्व जिन्दा हैl इसकी पहचान उस समय होती है जब दुश्मन, पड़ोसी किसी बड़ी विपदा में फंस जाता हैl उस समय लोग उससे चाहे जितना नाराज हों लेकिन उस दुःख की घड़ी में लोग जाकर उससे मिलते हैंl हर सम्भव मदद करते हैंl यदि अस्वस्थ है तो फल आदि देते हैंl वहाँ से निकलते हुए 10, 50, 100, 200, 300, 500 आदि जितना भी रुपए बन पड़े मदद कर दते हैंl इसी मदद से कैंसर पीड़ित महिला का बमुश्किल ऑपरेशन हुआl यह बात 21-22 अक्टूबर 2016 की हैl बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वरिष्ठ कथाकार और सामजिक न्याय का मन रखने वाले महान सम्पादक राजेन्द्र यादव पर 'हिन्दी की साहित्यक पत्रकारिता, हंस और राजेन्द्र यादव', विषय से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी रखी गई थीl जिसमें आशीष दीपांकर और मैं सहभागी रहेl आशुतोष कुमार, दीपांकर और मैं यानी हम तीनों उन्हें BHU में देखने गएl वो हम लोगों को देखते ही पहचान गईंl प्रसन्न हुईं| तत्क्षण ही उनकी आँखों से आँसू बहने लगेl आशीष दीपांकर आगे बढ़ कर ढाढस बधायेl थोड़ी देर तक बात चीत हुईl इसके बाद इस प्रकरण पर उन्होंने फेसबुक पर एक भवनात्मक पोस्ट भी लिखा थाl जिसमें साथी दीपांकर ने कुछ आर्थिक मदद का भी जिक्र किया था| उनकी बड़ी बेटी वहीं थी जो माँ की अस्वस्थता को देखकर मानसिक रूप से कुछ अस्वस्थ हो गई थीl उसे उन्होंने मदद स्वरूप 7 हजार रूपये दिए और मैंने भी 6 हजार रुपए दिएl उस कैंसर पीड़ित महिला को मैंने कुल 18,000 रुपये की मदद कीl एक एक रुपये जतन कर रही वह बच्ची इतनी खुश हुई कि मैं यहाँ बंया नहीं कर सकताl उसके बाद उन पैसों को उस बच्ची ने तुरंत कैंसर पीड़ित माँ के हाथों में रख दियाl उनकी आँख भर भी आई कि इस घोर गरीबी में आप लोगों ने इतना मदत कियाl यहाँ इस बात को स्पष्ट कर दूँ कि इस ‘आर्थिक मदद’ को साथी आशीष दीपांकर के अलावाँ कोई अन्य व्यक्ति नहीं जानता था न ही किसी अन्य व्यक्ति को कभी भी बताने का मेरा मन था लेकिन आपने आज ऐसी स्थिति में मुझे खड़ा कर दिया है कि ये सारी बातें आज पूरी दुनिया को बताना पड़ रहा है! जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है!
ऑपरेशन के समय जब खून देने की बात आई तो मुर्दहिया से कुछ लोग आयेl सुबह मदद हेतु जब रामबचन सृजन हॉस्पिटल पहुंचे तो खून देने वाले चेहरों को देख कर हैरान रह गएl बेहद भावुक होकर उन्होंने मुझे फोन किया कहे- ‘ये लोग खुद कुपोषित हैंl ये लोग क्या खून देंगेl मैं एक यूनिट खून स्वयं दे रहा हूँl’ उसके बाद उन्होंने खून दियाl ...इन तमाम दवाओं और दुआओं के बावजूद भी वह न बच सकींl अगले महीने वह तड़प-तड़प कर मर गईंl उनको पूछने वाला कोई नहीं मिला...
8. इसी पत्र में आपने मुझ पर निर्मम आरोप लगाते हुए लिखा है कि- "उन्हें इसमें मजा आ रहा है कि दो महिलाएं कैसे किसी पुरुष के अभाव में घर चला रही हैं उसकी छीछालेदर हो।" जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था वो सब आप सोच गईं और आपने उसे लिख भी दियाl आपको बता दूँ कि माँ और पिता विहीन मीना कुमारी की दोनों बेटियों में से एक बेटी पिता और माँ की मृत्यु के गहरे सदमें के कारण मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गई थीl यह वही बेटी है जो 12वीं पास कर किसी तरह 2016 में jnu आई थी, लैंग्वेज में इंट्रेंस की तैयारी करनेl पूरे jnu में अंदर ही अंदर मातम छा गया थाl मुझसे भी फोन करके पूछा गया कि “इसको आप लाएँ हैंl” मैंने कहा --'नहीं”,... आखिर कौन लाया है इसे?' वास्तव में, यह लड़की एकदम आफत बन गई थीl इस आफत को कौन मोल लेl कोई दलित तैयार नहीं हुआ जो एंट्रेन्स की तैयारी करने आई इस लड़की को अपने रूम में रखेl चूँकि शुरू में दलित शोधार्थियों से ही रखने की उम्मीद थीl घोर अम्बेडकराईट रिसर्चर-लड़के-लड़कियों, प्रोफेसर्स तक से कहा गया लेकिन कोई तैयार नहीं हुआl बस एक भय थाl अगर कोई जान गया तो क्या होगा! उनका परिवार कहेगा आप कौन हैं इसे रखने वाले आदि आदि... उसके बाद कट्टर कम्युनिस्ट (अहीर) के लड़के ने इस समस्या को एक प्रोग्रेसिव बंगाली ब्राह्मणी पुत्री से कहाl उस ब्राह्मणी पुत्री ने तुरन्त बोला उसे बुलालो मैं अपने पास रखूँगी जो होगा सो मैं देख लूँगीl उस प्रोग्रेसिव ब्राह्मण पुत्री ने उसे 11 दिन के आस-पास अपने हॉस्टल में रखाl दवाखानासमय से एंट्रेंस की तैयारी के लिये भेजना; सब देख रेख करती रही लेकिन मुर्दहिया से सीधे jnu आई यह लड़की jnu में लगातार आफत बनी रहीl यह लड़की पूरे 11 दिन 'भय' भरे माहौल में तैयारी करने जाती रहीl अंततः एंट्रेन्स हुआ और रिज़ल्ट आया, एडमिशन नहीं हुआl उसके बाद "बला" बनी यह ‘बाला’ सदा के लिए टल गईl यह आफत और बला दरअसल वह लड़की नहीं थी उस लड़की के भेष में ‘राधा देवी’ थींl यह राधा देवी किसी से jnu में अपना परिचय न बता देl यह 'भय' सबको 11 दिनों तक सताता रहा| खैर वह राधा देवी किसी को अपना परिचय क्या बताएंगी जो 62 साल तक किसी को अपना परिचय इस आश में नहीं बतायीं कि कोई तो मेरा परिचय पूछने आयेगा... ! 
जो लड़की डरी सहमी 11 दिनों तक jnu में रही उसकी भयानक गरीबी में शादी हुईl शादी से पहले माँ-पिता विहीन लड़की ने आशीष दीपांकर को फोन कियाl और कहा- 'भईया आप लोग मेरी शादी में नहीं आयेंगे कोई नहीं है आज मम्मी... कह कर फफकते हुए रो पड़ीl' दीपांकर ने ढाढ़स बँधाया कि हम सभी लोग आयेंगे क्यों नहीं आएंगेl उसके बाद उन्होंने मुझे फौरन फोन किया और कहा गगन जी आप चाहे जहाँ हों जैसी स्थिति में हों लेकिन मीना देवी की बड़ी बेटी की शादी पड़ी हैl आज उसका फोन आया थाl वह फफक फफक कर रोने लगीl हम लोगों को उसकी शादी में जरूर चलना चाहिएl मैंने कहा ठीक है—‘मैं आ जाऊंगाl’ ... खैर हम दोनों गएl वहाँ पहुँचने के बाद मैंने उससे पूछा— ‘पहचान रही हो|’ इस पर उसने कहा— ‘भईया आप लोगों को नहीं पहचानूंगी| आप लोगों ने कैंसर के समय मम्मी की बहुत मदद किया था...’ पूर्व में दीपांकर जी से बात हुई थी कि- हम सबसे जो भी बन पड़े आर्थिक सहयोग करना चाहिएl वहाँ उन्होंने तीन हजार रूपये दियाl उन्होंने इस घोर गरीबी में हो रही शादी का जिक्र शैलजा वर्मा (शोधार्थी-शकुन्तला मिश्रा, विश्वविद्यालय, लखनऊ) से किया था| मदद स्वरूप उन्होंने दो हजार रुपये दिए थेl उसे भी उन्होंने दियाl तीन हजार रुपये मैंने भी दियाl सुबह माँ और पिता विहीन बेटी रोते रोते विदा हुई
उनकी दूसरी बहादुर बेटी आज 2018 में उसी आज़मग़ढ में भूख से लड़ते हुए पढ़ रही है जिस आज़मगढ़ में तुलसी राम 1965 में पढ़ रहे थेl भूख से लड़ते हुए उस बहादुर बेटी का ज्ञान प्राप्ति संघर्ष जारी हैl उस बहादुर बेटी का दिन खाली पेट और रात नमक-भात खाते हुए गुजरती है| सच तो यह है कि आप आदरणीय तुलसी राम की रक्तपुत्री हो सकती हैं लेकिन उनकी बहादुर पुत्री आज भी आज़मगढ़ में भूख और ज्ञान के बीच संघर्ष कर रही हैl मैं उस 21 वर्षीय लड़के को सलाम करता हूँl जो उनकी मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटी से शादी कियाl वह कानपुर में रहते हुए 6 हजार की नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई कर रहा हैl इस 6 हजार रुपये में ही अपनी पत्नी की B.H.U. से दवा करा रहा है, अपनी पत्नी के साथ, नाना और नानी का पेट पाल रहा हैl उस लड़के के ऊपर भी माँ बाप की छत्रछाया नहीं हैl आजमगढ़ में भूख से लड़ते हुए पढ़ाई करने वाली लड़की को ग्यारह-बारह सौ या जो भी बन पड़ता है, हर महीने पैसा भेजता हैl मैं क्या क्या बताऊँ आपको ऐसी सैकड़ों बातें हैंl यह सब बात लिखते हुए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रहीl मैंने कभी यह सोचा नहीं था कि यह सब भी लिखना पड़ेगाl बहुत सारी बातें हैं जिन्हें मैं यहाँ लिख नहीं सकता क्योंकि वो आपकी सीमा से बाहर हैंl दरअसल उपर्युक्त समस्याएँ सार्वजनिक हैंl मैं शर्मिन्दा हूँ कि ‘ईडियट पत्रकार’ ने आपका ऐसा इस्तेमाल कर दिया कि मुझे यह सब लिखना पड़ रहा हैl  
खैर मुर्दहिया पर विमोचन के बाद सभी लोग मार्शल में बैठे और मुर्दहिया से आज़मगढ़ शहर में होटल में ठहरने के लिए निकल लिएl उसके बाद मैं और रामबचन सृजन, उनकी बाईक से शहर के लिए निकलेl जबकि मीना कुमारी और अंकल की हार्दिक इच्छा थी कि आज की रात कम से कम सभी अतिथि लोग घर पर रूकेंl खैर यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैl शहरी वातारण में रह लेने के बाद ग्रामीण वातावरण में रुकने में समस्या होतीl स्वाभाविक हैl लेकिन साथी आशीष दीपांकर और कुछ शोधार्थी साथी तुलसी राम के खंडहर हो चुके घर पर ही रुकेl यद्यपि कि मैंने कहा शहर चलिये तो उन्होंने कहा— ‘नहीं मेरा मन हो रहा है कि मैं यही रुकूँl’ आगे उन्होंने कहा कि वैसे मैं मन बना कर आया था कि जिस मुर्दहिया को अब तक पढ़ रहा थाl उस मुर्दहिया की बातों को तुलसी राम सर के घर एक रात रूक कर महसूस करूँl उनके साथ कुछ और शोधार्थी साथी भी मुर्दहिया में रात में रूकेl चूँकि शहर में सुबह 9 बजे से तुलसी राम पर कार्यक्रम थाl वहाँ ‘साहित्य उपक्रम’ का स्टॉल लगाना तय थाl वहाँ ‘बहुजन वैचारिकी’ तुलसी राम विशेषांक को स्टॉल पर समय से रखना थाl इसलिए मैं और सृजन वहाँ से चल दिएl




9. आपने आगे लिखा है मेरे साथ jnu के कुछ प्रोफेसर और शोधार्थी भी थेl आपने नाम स्पष्ट नहीं लिखा है लेकिन मैं यहाँ लिख रहा हूँ- आदरणीय प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकार, आदरणीय प्रोफेसर अजय पटनायक, शोधार्थियों में मुन्नी भारती जी, जितेंद्र कुमार सर और आप थींl डीयू से मैं (धर्मवीर यादव गगन) था, बीएचयू से रामबचन सृजन और छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से आशीष दीपांकर थेl कुछ अन्य विश्वविद्यालयों से भी शोधार्थी साथी आये हुए थेl इतने लोगों के बीच आपने सिर्फ मेरा नामोल्लेख कियाl इससे आपका मन मैं सहज ही समझ सकता हूँl उसी समय jnu में कन्हैया कुमार का प्रकरण शुरू हुआ थाl इस कारण आदरणीय अजय पटनायक को आनन-फानन में आज़मगढ़ में व्याख्यान देकर बनारस से फ्लाइट पकड़ बीच में ही jnu जाना पड़ा थाl खैर वहाँ अर्थात् मुर्दहिया में उपस्थित सभी लोगों को यह बात पता चल गई कि यह राधा देवी हैं, ये तुलसी राम सर की पहली पत्नी हैंl मैं जितेंद्र कुमार सर के बारे में कुछ नहीं कह सकता कि उन्हें यह बात पता थी या नहींl वहाँ जननाट्य मंडली अपना नृत्य प्रस्तुत कर रही थीl उसे आगे बैजनाथ गँवार भईया बढ़ा रहे थेl आदरणीय हरमंदिर पाण्डे संचालन कर रहे थेl उन्होंने ही मुझे मुर्दहिया पर इस कार्यक्रम में विशेषांक के विमोचन हेतु आमंत्रित किया थाl इसका मैं सदा आभारी रहूँगाl इस दौरान प्रोफेसर तुलसी राम सर पर आये 'बहुजन वैचारिकी' पत्रिका के तुलसी राम विशेषांक भाग-1, का विमोचन हुआl मेरी हार्दिक इच्छा थी कि तुलसी राम सर के घर की महिलाओं के हाथों इस विशेषांक का विमोचन होl खैर सभी महिलाएं आईं और वैसे ही हुआl संयोग से विमोचन में राधादेवी भी शरीक हुईं


                     सफेद साड़ी में अंगीरा के बगल में राधा देवी        

इसके बाद मुर्दहिया आये सभी अतिथिगण अपनी अपनी बात क्रम से रख रहे थेl इस बीच पता नहीं आपने ध्यान दिया की नहीं, एक व्यक्ति बीच बीच में बार बार माईक पकड़ने की कोशिश कर रहा थाl वो सबके सामने कुछ कहना चाहता थाl लेकिन उसे बार बार संचालक महोदय हटा दे रहे थेl ऐसा लग रहा था कि पूर्व सूचना उन्हें दी गई थी कि उस व्यक्ति को किसी भी स्थिति में माईक न दिया जायl दरअसल बार बार माईक पकड़ कर कुछ कहने की कोशिश करने वाले व्यक्ति राधा देवी के ‘भाई’ थेl जो शायद कहना चाहते थे कि आप सब तुलसी राम पर कार्यक्रम कर रहे हैं लेकिन मेरी बहन के साथ जो उन्होंने अन्याय किया है उसकी भरपाई कौन करेगा? मुझसे जो 120 रुपए माँग कर ले गए थे उसकी भरपाई कौन करेगा? इस चलते हुए कार्यक्रम में राधा देवी बीच बीच में सिसक रहीं थींl यहाँ मैं यह साफ़ साफ महशूश कर रहा था कि jnu, du में जो हम सब नारे लगते हैं- 'पितृसत्ता से आजादी', 'सामन्तवाद से आजादी', ‘जेंडर जस्टिस लॉन्ग लिव’l वह सब कितना अधूरा और झूठा हैl   
10. आपने पत्र में लिखा है- "आपके न्याय के लिए ठीक मेरे पापा की बरसी वाले दिन 13 फ़रवरी को ही चुना गया। जितेन्द्र विसारिया जिनका कहना है कि असल में वो राधादेवी के न्याय के लिए मुहीम चला रहे हैं , उन्होंने आपके न्याय के लिए 13 फ़रवरी आने का इंतज़ार किया या फिर एक और इत्तेफ़ाक़ ये है कि 13 फ़रवरी के दिन धर्मवीर गगन जिन्होंने पापा के ऊपर तुलसी राम विशेषांक निकाला और दो साल पहले मेरे साथ आपसे मिले थे, जितेन्द्र विसारिया के साथ दिखते हैं। तुलसी राम विशेषांक की वजह से धर्मवीर गगन तो हमारे बहुत करीबी थे, पचासो बार उसके सन्दर्भ में हमारे घर आये हैं, अपने जीवन की हर एक तस्वीर उनको दिखाई जिसमें से वो अपनी पत्रिका के लिए छांट सकें।" दरअसल मैं पेरियार ललई के साहित्य और चिंतन की खोज में ग्वालियर पहुंचा हुआ था l 13 फ़रवरी को 11 बजे सुबह मेरे मैसेंजर में मैसेज आया l जिसे मैंने यूट्यूब पर ओपन किया l मैं देखते ही पहचान गया l इसके बाद आवाज सुन जितेंद्र विसारिया सर ने पूछा, 'भोजपुरी में क्या सुन रहे होl' मैंने कहा कुछ नहीं l उन्होंने कहा मैं भी भोजपुरी जनता हूँ l उनके विशेष आग्रह पर मैंने उन्हें वीडिओ दिखाया l वे पूछने लगे कि ये कौन महिला है l जो इतनी व्यथित हो कर अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही हैं मैं नहीं बता रहा था l उनके बहुत कहने पर मैंने बताया यह राधा देवी हैं l तुलसी राम सर की पहली पत्नी l वे सन्न रह गए | इस पर सर ने दो बार वीडिओ सुना और कहाँ कि 'यार इस स्त्री के साथ तुलसी राम ने तो बहुत अन्याय किया l जिस महिला ने उन्हें गहना, बैल सब बेच कर पढ़ाया l उसके साथ उन्होंने इस तरह का व्यवहार किया l यार तुलसी राम सर ने इस पहली पत्नी का  उल्लेख मुर्दहिया में क्यों नहीं किया ? मैं 2003 से उन्हें जनता हूँ l मैंने तो तुलसी राम सर की आत्मकथा पर शोध किया है l उसमें राधादेवी का कहीं भी जिक्र नहीं है l... अब चाहे जो हो मैं इस महिला की आवाज उठाऊंगा l" इस पर मैंने कहा जितेंद्र सर इससे तुलसी राम सर की छवि ख़राब हो सकती है l इस पर उन्होंने कहा - 'यार आपको उनकी छवि की पड़ी है l यहाँ यह महिला भूखों मर रही है, कल को भूख से मर जायेगी तो कौन छवि बनेगीl' इसके बाद उन्होंने पूछा कि "क्या राधा देवी के बारे में तुलसी राम की बेटी या पत्नी नहीं जानती हैं?" इस पर मैंने कहाँ- "सर 13 फ़रवरी, 2016 को तुलसी राम की बेटी अंगीरा चौधरी मुर्दहिया, आज़मगढ़, आईं थीं वो इनसे मिल चुकी हैं l" इस पर विसारिया जी ने कहा - 'क्या उन्होंने राधा देवी की कोई मदद नहीं की? जो ये महिला आज भूखमरी की शिकार हो गई है l भाई यह महिला मर जाएगी l" उसके बाद मैं और साथी प्रदीप कुमार गौतम झाँसी के लिए निकल गए l मैं वहाँ से शाम को नागपुर चला गया l चूँकि मैं जानता था 13 फरवरी, 2016 में ही अंगीरा राधादेवी से मिल चुकी हैं l इस कारण उनसे इस वीडिओ के सन्दर्भ में बात करना मुनासिब नहीं समझा l इस बीच जितेंद्र विसारिया सर ने एक पोस्ट लिखी जिसमें उन्होंने लिखा - "सजनवा बैरी हो गए हमार l सभी प्रबुद्धजनों, बहुजनों से क्षमा सहित यह एक लेखक के अपमान में नहीं एक स्त्री के सम्मान और उसके हक हुकूक के पक्ष में पोस्ट है कि उन्हें न्याय नहीं मिला l #जस्टिसफ़ॉरराधादेवीl" इसके बाद उस दिन उन्होंने कुछ नहीं लिखा l यह 13 फ़रवरी की पोस्ट है l इसे आप जितेंद्र सर की वाल पर देख सकते हैं l यदि मेरे मन में कोई “अन्य भावना” होती तो मैं 13 फ़रवरी, 2016 के बाद ही राधादेवी का साक्षात्कार आदि कर सकता था l मेरा घर भी आज़मगढ़ है l 2016 से 2018 के बीच मैं कई बार अपने घर गया लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया l
11. आपने एक फ़ोटो खींचे जाने के सन्दर्भ में लिखा है--"बस एक बार ही ऐसा हुआ कि उन्होंने हॉस्पिटल में आखिरी दिनों में बेड पर जर्जर स्थिति में लेटे पापा के बगल मुझे जबरदस्ती खड़ा करके फोटो लेने की बात कही थी तो मैं झल्ला पड़ी थी , लेकिन उसके बाद भी उन्होंने वैसी फोटो ली ही थी जो आज उनके विशेषांक में लगी हुई है।" मुझे बेहद अफसोस है कि मैं आदरणीय तुलसी राम सर को जिस आस्था से देखने गया था उसकी आप इस तरह व्याख्या कर रही हैं l .....खैर आप सबको सच बता दूँ l मैं इससे पहले कई बार सर को हॉस्पिटल देखने जा चुका था l इस बार जब मैं साथी जगदीश सौरभ के साथ तुलसी राम सर को देखने जा रहा था l हम दोनों को यह महशूश हो रहा था कि शायद अब तुलसी राम सर खड़े न हो पाएंगे l इस पर उन्होंने कहाँ – ‘हाँ सर की तबीयत बहुत ख़राब है l अब मुश्किल लग रहा है l' इसके बाद मैंने- कहा कि सम्भव होगा तो सर के साथ जीवित रहते एक अंतिम फ़ोटो खिंची जायेगी l हम सब सुबह हॉस्पिटल पहुंच गए l चूँकि नाश्ता हम लोग नहीं किये थे l इस कारण हॉस्पिटल के बाहर एक चाय की दूकान पर बैठ कर चाय पी रहे थे कि हम दोनों के ऊपर से एक इतनी बड़ी जहाज गुजरी की मुझे उसे देख कर बहुत हैरानी हुयी l मैंने कहा – जहाज इतनी बड़ी हो सकती है क्या?  इस पर साथी जगदीश ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दिल्ली आने वाले हैं l इस कारण कई दिन पहले से ही यह अमेरीकी सुरक्षा विमान दिल्ली के आसमान में सुरक्षा निगरानी हेतु मडरा रहा हैl खैर हम दोनों चाय पीने के बाद हॉस्पिटल के अंदर गए l इसके बाद मुझे ध्यान आया कि यहाँ तो सिंगल एंट्री होती है l इस पर मैंने जगदीश से पुन: गुजारिश किया कि आपके पास अच्छा फोन है l प्लीज आप अंदर जाईयेगा तो एक फ़ोटो खींच लीजिएगा l इस पर उन्होंने हामी भरी l खैर हाथ पैर और मुँह में ग्लब्स लगाया गया l सिंगल एंट्री हुई l मैं पहले अंदर गया और देखा कि श्रद्धेय तुलसी राम अचेत पड़े हैं, दोनों हाथ दोनों तरफ निढाल पड़े हुए हैंl मैंने हाथ जोड़कर श्रद्धेय तुलसी राम जी को अभिवादन किया l सर इतने जरजर हो चुके थे कि बस आँख थोड़ी सी और खोल पाये l मैं मुश्किल से 12 से 13 सेकेण्ड वहाँ रुकने की हिम्मत जुटा पाया l बेड के बगल में एक लड़की ख़ड़ी थी l अनुमान से मैंने पूछा आप लूबा हैं l इस पर उन्होंने सर हिलाकर हामी भरी l तत्पश्चात मैं बाहर आ गया l इसके बाद साथी जगदीश सौरभ तुलसी राम सर को देखने गए l जगदीश जब बाहर आये तो मुझसे कहने लगेसर की हालत बहुत नाजुक है l वे बहुत भावुक लग रहे थे l आगे वे बताए कि मैं गया तो सर को अभिवादन किया l इस पर सर बड़े ही धीमे स्वर में भोजपुरी में बोले कि- 'आज़मगढ़ से आयल हवाl' अर्थात् आज़मगढ़ से आये हैं l मैंने कहाँ- "हाँ"l थोड़ी देर रुकने के बाद मैंने एक फ़ोटो खींचने के बारे में नर्स से पूछा तो उन्होंने कहा नहीं फ़ोटो क्लिक करना अलाउड नहीं हैl इस पर मैंने नर्स से विशेष गुजारिश की तो उन्होंने कहा जल्दी कीजिए l और तुरन्त बाहर निकल जाइए l मैंने तत्काल मोबाईल कैमरे से एक क्लिक किया और बाहर आ गया l’ बाहर आने पर उन्होंने वो फ़ोटो दिखाया l फ़ोटो इतना विदारक था कि वो फेसबुक पर डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाये l वैसे मैंने गुजारिश भी की थी कि इसे अब सीधे  विशेषांक में लगाया जायेगा l इस फ़ोटो को मैंने तुलसी राम विशेषांक में भी जगह दिया है l यह फ़ोटो इतना विदारक है कि यहाँ नहीं लगा सकता l मुझे इस बात का बेहद अफ़सोस है कि अंगीरा चौधरी ने इस आस्था के प्रसंग हो तर्क बनाते हुए बहुत ही गलत तरीके से प्रस्तुत किया l
12. आपने पत्र में लिखा है--"राधा देवी को न्याय दिलाने की मुहीम में उन्हें प्रभा चौधरी और अंगीरा चौधरी के बारे में झूठ कहते यह शर्म नहीं आई कि हम दोनों का फ़ोन नेटवर्क से बाहर बता रहा है और संपर्क करने में वो असमर्थ हैं जैसे हमने अपना मोबाइल बंद कर कहीं छिप गए हों।" यह प्रश्न मेरा नहीं है l उसके बाद भी प्रसंगवस कह दूँ कि मैंने आपको कोई कॉल, मैसेज, मेल आदि नहीं किया था l इसको मैंने जितेंन्द्र विसारिया सर और सुशील सुमन सर से पूछा l इस पर उन्होंने कॉल की गयी कॉल डिटेल से स्क्रीन शोर्ट्स भेजा जिसे मैं यहाँ अटैच कर रहा हूँ l



13. आप लिख रही हैं कि "जिस वीडिओ को धर्मवीर गगन सभी को चुपके से मैसेज में भेज रहे हैं" हाँ यह सच है कि मैंने मेसेंजर में कुछ लोगों को विडिओ भेजा l चूँकि आप 13 फरवरी 2016 को राधा देवी से मिल चुकी थीं l इस वीडिओ को देखने के बाद मुझे लगा कि 13 फरवरी, 2018 तक आपने उनकी कोई मदद नहीं की है l इस कारण मैं इस उम्मीद से कुछ दलित, स्त्री और शुभ चिंतकों को वह वीडिओ भेजा कि भूख से मरती राधा देवी की कुछ मदद हो सके न कि आपको या आदरणीय तुलसी राम सर को बदनाम करने के लिए l मैं भी 13 फरवरी, 2016 को उनसे मिल चुका था l यदि मुझे कुछ करना होता तो मैं दो साल तक इंतज़ार नहीं करता l आरोप लगाने से पहले  आपको इस बात को समझना चाहिए था l
14. आप आगे लिखती हैं - "विसारिया लिखते हैं कि प्रोफ़ेसर बनने के उपरांत तुलसीरामजी ने राधादेवी को बिना तलाक दिए अपने से उच्चजाति की शिक्षित युवती से विवाह कर लिया क्या धर्मवीर गगन को  नहीं पता कि वह युवती और मेरी मां उच्चजाति की नहीं हैं।" आप यह बात किस आधार पर मुझसे कह रही हैं l मुझे पता नहीं है l आपकी इस बात से ऐसा लग रहा है जैसे आपने पहले ही मान लिया है कि धर्मवीर यादव गगन ही सब कुछ जितेन्द्र सर को बता रहे हैंl जबकि मैं 13 को ही नागपुर के लिए निकल चुका था l दूसरी बात कि वीडिओ में राधा देवी स्वयं कहती हैं कि 'दिल्ली गईलं त अण्डित से बिआह कईलं की पण्डित से कईलं के जानss l' जहाँ तक मुझे लग रहा है l वो इसी आधार पर कहे होंगे l
15 आप आगे लिखती हैं- "क्या धर्मवीर गगन को नहीं पता है कि तुलसी राम के मरणोपरांत प्रभा चौधरी को कोई भी पेंशन नहीं मिलती है। क्या धर्मवीर गगन को नहीं पता है कि राजकमल वालों की तरफ से साल में कितनी रॉयल्टी मिलती है ?" आपसे  मैं केवल 6 बार मिला हूँ l क्या मैंने आपसे या आदरणीय प्रभा चौधरी जी से कभी पूछा कि आपको तुलसी राम सर की कितनी पेंशन या किताबों की रॉयल्टी मिलती है या नहीं l अगर मैंने कभी भी पूछा हो तो आपको लिखना चाहिये था l साथ ही मैंने कहीं भी किसी से कहा हो या कहीं भी लिखा कि 'तुलसी राम की पेंशन में राधा देवी को आधा दिया जाय या मुर्दहिया मणिकर्णिका की रॉयल्टी में राधा देवी को आधा दिया जाय l' भूख से मरती हुई राधा देवी का वीडिओ आने के बाद जिन लोगों ने यह सवाल उठाया आपको उनसे यह सवाल पूछना चाहिए था l वैसे मैं स्पष्ट कर दूँ कि यह सब आपका व्यक्तिगत एवं पिता की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का मामला था l इस कारण मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की और न ही आगे भी जानने की कोशिश करूँगा l मुझे सच तो यह जान पड़ रहा है कि यह आपके विचार नहीं हैं वरन यह उस ईडियट पत्रकार के प्रश्न हैं जो हम सबको लड़ाने के लिए लिखा है l
16. आप लिखती हैं कि "आज दुःख है मुझे कि मरते वक़्त मेरे पापा ने गगन को अच्छा स्टूडेंट मान भरोसा किया था।" आपके पापा गगन को अच्छा स्टूडेंट मानते थे l इसका मैं हृदय से आभारी हूँ l मैं आज भी आदरणीय तुलसी राम का आदर करता हूँ | उनकी वैचारिक व्याख्याओं के प्रति प्रतिबद्ध हूँ l आगे भी रहूँगा | लेकिन यह आपकी व्यथित कर देने वाली बात है कि जो सवाल मैंने कहीं किया ही नहीं उसे भी आपने गढ़कर कई सवाल उस ईडियट पत्रकार के इशारे पर मुझ पर जबरन थोप दिया

17. आप आगे लिखती हैं - 'वो साल भर जुड़े रहकर एक तुलसी राम विशेषांक निकालते हैं , उसके एक साल तक फिर पच्चीसों बार उस पत्रिका का विमोचन करवाने के सिलसिले में आप हमारे घर से जुड़े रहते हैंl" मैं स्पष्ट कर दूं कि तुलसी राम विशेषांक के विमोचन के सन्दर्भ में मैं एक बार भी आपसे नहीं मिला l उसका पहला विमोचन 13 फ़रवरी, 2016 को मुर्दहिया, धरमपुर, आज़मगढ़ में होता है l इस विमोचन हेतु आदरणीय हरमंदिर पाण्डे ने मुझे आमंत्रित किया था l इस सिलसिले में मेरी आपसे कोई बात नहीं हुई थी l आपको याद हो न हो लेकिन मुझे याद है कैफियत ट्रेन में प्रोफेसर मालाकार, मुन्नी भारती, जितेन्द्र कुमार सर और हम सब जब मिले तो आपने कहा- ‘आपभी चल रहे हैंl’ मैने कहा- 'हाँ' l मुर्दहिया, धरमपुर, आज़मगढ़ के कार्यक्रम के सन्दर्भ में मुन्नी भारती जी ने मुझे पहली बार बताया था l इसके बाद मैं उनसे आयोजक हरमंदिर पाण्डे जी का नम्बर लिया और उनसे बात किया l मैंने उनसे तुलसी राम विशेषांक के बारे में बताया l उन्हें यह सब जानकर बहुत प्रसन्नता हुईl उन्होंने मुझे आमंत्रित करते हुए कहा कि 'गगन आप स्मारिका लेकर आईए l इससे अच्छा मौका आपको कभी नहीं मिल सकता l' मैं किन किन कठिनाईयों से गुजरते हुए 1100 प्रतियां छपवाया l कैसे कैसे 400 प्रतियां कैफियत ट्रेन से लेकर आज़मगढ़ गया आपको इसका अन्दाजा नहीं होगा l यदि आप इसे थोड़ा-सा भी महसूस करती तो इस तरह का आरोप आप कभी नहीं लगतीं l आपको याद हो न हो प्रोफेसर मालाकार सर का फोन भी उसी ट्रेन में शाम को चोरी हो गया था l 13 फ़रवरी, 2016 को ही तुलसी राम सर पर बनारस हिन्दू विश्वविद्याल, में रामनरेश राम सर ने 'तुलसी राम व्याख्यान माला' का दूसरा व्याख्यान आयोजित किया था l जिसमें उनके द्वारा सम्पादित किताब "सत्ता विमर्श और दलित आत्मकथायें" और बहुजन वैचारिकी के 'तुलसी राम विशेषांक भाग-1', का विमोचन-- आदरणीय कवँल भारती, दीपक मलिक, राजेन्द्र कुमार, सदानन्द शाही, रामायण राम आदि के हाथों हुआ l इसके बाद मैं आपके घर जाने वाले प्रसंग को बता दूँ l सबसे पहले मैं आपके घर तुलसी राम विशेषांक के संदर्भ में आदरणीय तुलसी राम सर से मिलने जनवरी 2015 में गया l सर को मैंने तुलसी राम विशेषांक का ड्राफ्ट दिखाया l सर ने बात चीत के क्रम में आपके बारे में बताया कि मेरी एक बेटी है ‘लूबा’ l आज पेपर देने गई है l आपसे मेरी पहली मुलाकात 8 फरवरी, 2015 हॉस्पिटल में होती है | 13 फरवरी, 2015 को तुलसी राम का निर्वाण हो जाता है | उसके बाद दूसरी बार सुबह 14 फरवरी को मैं श्रीमंत जैनेन्द्र के साथ आपके घर पर गया l जहाँ सर के सैकड़ों गमगीन शुभ चिंतक खड़े थे l उसी शाम तीसरी बार आपके घर आकाश गौतम सर, मुन्नी भारती जी के साथ गया और पवित्राण पाठ में सरीक हुआ l उसके बाद मैं चौथी बार आपसे तुलसी राम सर की स्मृति सभा में रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में मिला l जहाँ आपसे पहली बार अनीता भारती मैम भी मिली थीं l उसके बाद महीनों बाद पांचवीं बार मैं आदरणीया प्रभा चौधरी जी से विशेषांक हेतु साक्षात्कार लेने आपके घर गया l उस समय वो घर (jnu) पर किसी के साथ घर के सामान आदि घर बदलने के मन से निकलवा रही थीं l मैं उनको अभिवादन किया l थोड़ी देर बात हुयी l वो व्यस्त थीं इस कारण मैंने स्वयं कहा कि मैं बाद मे आऊँगा l छठवीं बार मैं तुलसी राम सर के फोन पर कॉल करके आपसे बात किया और आपके घर गया l आदरणीय प्रभा चौधरी का साक्षात्कार किया l आपने एक पुराना और बड़ा-सा एलबम दिखाया l जिसमें सर के कई दुर्लभ फोटोज आपने दिखाया l उसे बाद में आपने मेल किया l आपको याद हो न हो मुझे याद है उस समय घर में एक सुंदर सा पक्षी आ गया था l हम सब उसे देख बहुत प्रसन्न हुए l तब आपने तुलसी राम सर का एक संस्मरण सुनाया कि 'जब मैं छोटी थी- तब पापा सुबह सुबह चिड़ियों के सुंदर आवाज करने पर मुझे जगाकर सुनाते थे l उसके बारे में बताते थे l' यह आपके घर जाना मेरा अंतिम बार थाl उसके बाद एक बार मैं तुलसी राम विशेषांक के संदर्भ में तुलसी राम की bhu में लिखी गई थिसिस के बारे में आपसे jnu में मुलाकात किया था l मुझे सर के संदर्भ में कुछ तथ्यात्मक जानकारी चाहिए थी l आपने मुझे तुलसी राम सर का एक रिज्यूम दिया था l इसके बाद मैं आपसे कभी नहीं मिला l यह सब बातें लिखते हुए मुझे बहुत शर्मिन्दगी महसूस हो रही है घीन आ रही है कि मैं किस आस्था से आदरणीय तुलसी राम के सन्दर्भ में आपके घर गया और किस संदर्भ में मुझे उसका उत्तर देना पड़ रहा है l दरअसल उस ईडियट पत्रकार ने आपका पूरा इस्तेमाल किया और आप इस्तेमाल हो गयीं l आपको यह सब लिखते या लिखवाते समय कम से कम एक बार सोचना चाहिए था कि जिस राधा देवी प्रकरण में मैंने कहीं एक भी पोस्ट नहीं लिखा l किसी से कुछ कहा तक नहीं उस पर इस तरह का झूठा आरोप क्यों लगाऊं !
आपने एक बार भी नहीं सोचा कि जो व्यक्ति मेरे पिता में इतनी गहरी आस्था रखता हो उस व्यक्ति के बारे में यह ईडियट पत्रकार ऐसा क्यों लिखवा रहा है या लिख रहा है? अपनी बात सिद्ध करने के लिए आपका कुछ भी लिख देना मेरे लिए बहुत पीड़ा दायक है |  
18. आप लिख रही हैं- "जबकि अगर ये तनिक भी ईमानदार होतेहमसे व्यक्तिगत तौर पर मिलते या फोन करतेनहीं उठाने की अवस्था में मैसेज करतेमैसेज का जवाब नहीं मिलने पर ईमेल करतेफिर उस ईमेल का जवाब भी नहीं मिलने पर उस ईमेल को सार्वजनिक करते।" ‘ईमादारी’ एक बड़ा प्रश्न हैमैं हैरान हूँ कि आप "तनिक भी ईमानदार" के रूप में सवाल पूछ रही हैंl...खैर मैं जानता था कि आप 13 फ़रवरी, 2016 में ही राधा देवी से मिल चुकी हैंइस कारण मैंने आपको राधा देवी के सन्दर्भ में कॉलमैसेजमेल आदि कुछ भी करना जरूरी नहीं समझावैसे इसके पहले आपने ऐसा परिचय तब दिया था जब jnu के एक प्रोफेसर ने आपसे मेरी शिकायत की थी और राधा देवी का पहला साक्षात्कार जनवरी, 2015 में 'बहुरी नहीं आवनापत्रिका में छापा थाजिसे प्रोफेसर दिनेश राम सर ने लिया था। 13 फरवरी, 2015 को आदरणीय तुलसी राम सर का निर्वाण हो गयाजब आपको राधादेवी के छपे साक्षात्कार के बारे में पता चला तब आपने इन दोनों बातों के सन्दर्भ में मुझे कॉल किया थामैं jnu गयाआप से 35 मिनट के आस-पास इन सभी सवालों पर मैंने बात कीl आप संतुष्ट हुईं| मैंने आपसे कहा था कि जिस प्रोफेसर ने ऐसा कहा है| आप उससे मेरी बात कराइयेआपने कहा नम्बर नहीं हैमैंने कहा आप मुझे उस प्रोफेसर से मिलवाइयेमैं हैरान हूँ कि आज तक वो प्रोफेसर नहीं मिलालेकिन इस बार आपने राधा देवी प्रकरण पर एक बार भी बात करना उचित नहीं समझाl यदि आप खुला पत्र सार्वजनिक करने से पहले एक बार भी मुझसे बात करतीं तो मुझे अपनी बात रखने का मौका मिलता और यह प्रतिउत्तर मुझे नहीं लिखना पड़ता| लेकिन आपने ईडियट पत्रकार के इसारे पर जितना भी बन पड़ा सारे आरोप मेरे ऊपर थोप डालाजब कि मैं इस मुहिम में कहीं था ही नहीं और आपने मुझे ही कटघरे में खड़ा कर दियाइसका मुझे बेहद अफसोस हैआपने पत्र प्रकाशित करने से पहले मुझसे कोई बात नहीं किया| इस कारण इस प्रतिउत्तर को सार्वजनिक करते हुए मैं भी आपसे किसी प्रकार का संवाद नहीं कर रहा हूँ
19. आप लिख रही हैं कि- "जवाब न देने और फोन बंद करने का बेबुनियाद आरोप लगाकर हम माँ बेटी का भी चरित्र हनन किया है।" वैसे आपको बता दूँ 'चरित्रकोई गुड्डा-गुड्डी का खेल नहीं है जो पल में निर्मित हो जाए और पल में अपहृत हो जाएदरअसल आपका यह वाक्य मेरे लिए अत्यंत पीड़ा दायक हैआपको इस नृशंस आरोप से पहले एक बार जरूर सोचना और सहमना चाहिए थाआपको नाम- सन्दर्भ सहित लिखना चाहिए था कि धर्मवीर गगन ने यहाँ ऐसा लिखा है या इन्होंने ने इस व्यक्ति से ऐसा कहाआपने अपने बचाव के लिए जैसे जो बन पड़ा लिख दियाबस लोग कैसे राधा देवी पर बोलना बंद कर देंयह सच है कि लोग चुप हो गए लेकिन राधा देवी की भूख अभी ख़त्म नहीं हुईवह उनकी मृत्यु के साथ ही ख़त्म होगीसच तो यह है कि 'चरित्र हननआपके पत्र में जरूर आया है लेकिन जान पड़ रहा है यह बात पत्र में उस ईडियट पत्रकार ने चुपके से बैठा दिया हैआपको इस पत्र को अंतिम रूप से जारी करते समय कम से कम ध्यान से पढ़ लेना चाहिए थाl
20. आप लिखती हैं—“यह प्रोफ़ेसर तुलसीराम के ऊपर उछालने और उनके समाज के लिए दिए साहित्यिक योगदान को कमतर साबित करने की कोशिश की हैl" आपकी इस बात को पढ़कर मुझे हँसी आ रही है साथ ही गहरा दुःख भी हो रहा हैआपको इस तरह का आरोप कम से कम उस व्यक्ति पर लगाते हुए एक बार सोचना चाहिए था–
१. जिस व्यक्ति ने आदरणीय तुलसी राम पर 273 पेज़ का विशेषांक निकाला हो
२. जिस व्यक्ति ने इस विशेषांक के लिए 86 हजार रूपये खर्च किया हो
आपको बता दूँ कि मार्क्स, बुद्धअम्बेडकर के विचारों की जैसी व्याख्या आदरणीय तुलसी राम ने की है वैसी व्याख्या अब तक किसी दलित चिंतक ने नहीं की हैइसी वैचारिक व्याख्यात्मक प्रेम का प्रतिफल है ‘बहुजन वैचारिकी’ पत्रिका का 'तुलसी राम विशेषांक' भाग-1उन पर संपादन के दौरान मुझे कई सारे दस्तावेज ऐसे मिले जिन्हें यदि मैं विशेषांक में लगा देता तो आदरणीय तुलसी राम सर की छवि अवश्य ख़राब होतीजैसे—
३. 13 फ़रवरी, 2015 को आदरणीय तुलसी राम सर का निर्वाण हो गया25 फरवरी, 2015 को मैंने प्रोफेसर नंदू राम (JNU) का तुलसी राम विशेषांक हेतु संस्मरणात्मक साक्षात्कार लियाजिसमें सर ने बताया कि “'तुलसी की चाईल्ड मैरिज' (बाल विवाह) हुई थीमेरी भी चाईल्ड मैरिज हुई थीतुलसी भाई ने उसे छोड़-छाड़ दियादिल्ली आए तो दूसरी शादी कर लिएमैंने दूसरी शादी नहीं कीl" ये बातें आदरणीय नन्दू राम सर ने बहुत सहजता से कहा थाइस साक्षात्कार को मैंने उस विशेषांक में लगाया है लेकिन इस बात से तुलसी राम सर की छवि प्रभावित और खंडित हो सकती थीइस कारण मैंने इस प्रसंग को उस साक्षात्कार से हटा दिया और बाकी सारी चीजें प्रकाशित की|




४. आदरणीय राधा देवी और तुलसी राम के पिता परम आदरणीय तेरसी राम के संदर्भ में मेरे पास और बहुत-सी जानकारियां हैं लेकिन मैं यहां उन्‍हें लिख नहीं सकता।  
५. मान्यवर कांसीराम के खिलाफ तुलसी राम द्वारा लिखे लेख मुझे मिलेजिसमें उनकी मूल स्थापना है कि कांसीराम ने अम्बेडकर के 'जाति उन्मूलनके विचार को 'जातीय अस्मितामें बदलकर उसे चकनाचूर कर दियाउनकी बहुजन समाज पार्टी ने बुद्ध के 'बहुजनके मूल मायने को बदल दियाउसकी मूल भावना को नष्ट कर दियाइन लेखों को मैं विशेषांक में नहीं लगायाबल्कि तुलसी राम द्वारा कांसीराम की मृत्यु के बाद स्मृतिदिन पर लिखा गया लेख- 'दलितों के लेनिन कांसीरामको मैं विशेषांक में लगायातुलसी राम का कांसीराम पर लिखा गया यह अंतिम लेख हैl
६. सुश्री मायावती और बहुजन समाजवादी पार्टी के खिलाफ लिखे गए तुलसी राम के 11 लेख मुझे मिले लेकिन उनमें से मैंने एक भी लेख विशेषांक में नहीं लगायाइसलिए की तुलसी राम सर की छवि इससे ख़राब न हो जाएयहाँ एक बात और स्पष्ट हुई कि तुलसी राम सर ने JNU के जिन प्रोफेसर्स से संस्मरण नहीं लिखवाने को कहा था, उसका मुख्य कारण यही थाये सभी दलित प्रोफेसर तुलसी राम द्वारा बीएसपी और सुश्री मायावती की लगातार की जा रही विध्वंसक आलोचना का विरोध करते थेइस कारण उन सभी प्रोफेसर्स से उनकी नहीं जमती थीl
७. आदरणीय तुलसी राम सर ने बीएसपी और बीजेपी गठबंधन पर मान्यवर कांसीराम के नारे “तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार” को बदलते हुए— “तिलक तराजू और चमार इनको मारो जूते चारl' शीर्षक से राष्ट्रीय सहारा में लेख लिखा थायह लेख मुझे मिला जिसे मैंने छापा नहीं वरन छिपायाl
८. मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लिखे गए लेख मिलेएक लेख की हेडिंग थी- 'मुसोलिनी सिंह यादव'l इन सभी लेखों को मैंने नहीं छापा|
९. लालू प्रसाद यादव के खिलाफ लिखे गए लेख मुझे मिलेजिसे मैंने विशेषांक में नहीं लगायाआदरणीया राबड़ी अम्मा पर तंज कसते हुए उन्होंने एक लेख की हेडिंग लगाया था- 'लालू की रबड़ी'l जिसमें उनकी मुख्य चिंता है कि एक निरक्षर महिला मुख्यमंत्री कैसे बन गईइन सभी लेखों को मैंने नहीं छापा
उपर्युक्त लेखों को मैंने 2016 में आये विशेषांक में इसलिए भी नहीं लगाया कि 2017 में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव थाउससे भी आगे दलित और पिछड़े वर्ग का युवा जो अब बड़े पैमाने पर ज्ञान के संस्थानों में हैबहुसंख्यक वर्ग का यह युवा एक साथ फुलेअम्बेडकरपेरियार और मंडल को अपना हीरो मानता है| वह नाराज हो सकता हैकारण है कि अपनी महान विभूतियों के मूल चेतना के प्रति अभी भावुक हैअभी वो आलोचना सुनने और सहने को तैयार नहीं हैवो आदरणीय तुलसी राम सर से नाराज हो सकता थाये सारे लेख विध्वंसक लिखे गए हैंमैंने जहाँ तक आदरणीय तुलसी राम को पढ़ा उससे राजनीतिक दृष्टि से एक बात समझ में आई कि उनके सम्पूर्ण राजनीतिक चिंतन में इस देश की सभी राजनीतिक दलों की गहरी आलोचना हैबहुसंख्यक समाज की राजनीति करने वाले सामाजिक न्याय के राजनेताओं की विध्वंसक आलोचना हैवैसे मैं स्पष्ट कर दूँ कि निःसंदेह बहुसंख्यक राजनीति की सामाजिक न्याय से हो रही विमुखता पर चर्चा-परिचर्चा होनी चाहिएआलोचना-समालोचन होनी चाहिएआज भी अनेक बहुसंख्यक चिंतक इस पर बेबाक लिखते बोलते हैं लेकिन मुझे हैरानी हुई कि आदरणीय तुलसी राम ने कांग्रेस पार्टी की आलोचना में कहीं भी एक हर्फ़ नहीं लिखाजबकि कॉंग्रेस पार्टी ने कितना साईलेंटली दलितोंपिछड़ों और अल्पसंख्यकों का दमन कियाऔर नहीं तो कुछ लेख ऐसे मिले हैं जिसमें आदरणीया सोनिया जी और कोंग्रेस पार्टी का महिमा मंडन किया गया हैइन लेखों में यह सार निहित है कि दलितों की मुक्ति कॉंग्रेस पार्टी ही कर सकती हैदलितों को कोंग्रेस पार्टी के साथ रहना चाहिएउन्हें बहुजन राजनीति की तरफ नहीं जाना चाहिएआदरणीय प्रोफेसर विवेक कुमार अपने संस्मरण में कहते हैं कि—“2001 में अचानक उनका साथ मध्यप्रदेश के कोंग्रेस के बहुत बड़े लीडर दिग्विजय सिंह से हो गया| दिग्विजय सिंह उन्हें अपने हेलिकाप्टर में बैठा कर राईट विंग अर्थात् दक्षिण पंथ कि राजनीति पर कटाक्ष करने के लिए तुलसी राम को ले जाते थे| और तुलसी राम जी बहुत भयानक कटाक्ष करते थे| उन्होंने काफी प्रचार भी कियाl यहाँ पर अध्यापक होते हुए भी तुलसी राम सर लगातार वहाँ उसी बेबाकी से हिन्दू रुढियों, हिन्दू समाज के अंदर जो पोंगा पन्थ और अंधविश्वास है, उनको खूब खोल कर सबके सामने रखते थे| उन्होंने वहाँ खूब वाह वाही लूटी| वह एक नया प्रयोग कर रहे थे| बसपा कि राजनीति उनको कभी भाई नहीं|” ...खैर उनके राजनीतिक चिंतन में सबसे कड़ी आलोचना सुश्री मायावतीबसपा और लालू प्रसाद यादव की हैl
१०. मेरे लिए सबसे आहत करने वाली बात यह थी कि जब केंद्र में “मंडल कमीशन” लागू हो रहा था तब आदरणीय तुलसी राम सर ने “मंडल कमीशन” का विरोध किया थाउनके कई सारे लेख ऐसे हैं जो केंद्र में मंडल कमीशन/ओबीसी रिजर्वेशन लागू होते समय लिखे गए हैंl जिनमें वे “मंडल कमीशन” का जमकर विरोध करते हैं| वे “वर्ण व्यवस्था की मेरिट” शीर्षक लेख में लिखते हैं- "चौधरी चरण सिंह की पहल पर मंडल कमीशन का राजनितिक सत्ता को प्राप्त करने के लिए गठन किया गया थाजिसका एक महत्वपूर्ण घटक था कॉंग्रेस के दलित वोट बैंक के विरूद्ध पिछड़ी जातियों का लोहियावादी वोट बैंक तैयार करनाअतः इसका मूलभूत आधार ही पर्दे के पीछे छिपा तत्कालीन दलित विरोध थाl ...अब स्थिति ये है कि मंडल कमीशन के बाद जिस तरह से दबंग पिछड़ी जातियों का राजनीतिक उत्थान हुआउसके चलते दलितों पर जातीय अत्याचार खूब बढ़ेl" इस समय तक आदरणीय तुलसी राम मार्क्सबुद्ध और अम्बेडकर का गहरा अध्ययन कर चुके थेआप सोचिये कि जिस मंडल कमीशन की जमीन पर मैं और मेरे जैसे हजारों युवा एकेडमिक्स में जिन्दा हैंआज मंडल कमीशन न होता तो मैं किसी गुलाम की तरह यूरेशियन गाय चारा रहा होताजिस “मंडल कमीशन” से मिले मानवीय अधिकार से हजारों लाखों लोग राष्ट्रनिर्माण करते हुए प्रगति कर रहे हैंउस “मंडल कमीशन” को आदरणीय तुलसी राम सर ने 'दलितों का दुश्मनकहते हुए विरोध किया थामैंने दिल की न सुन कर अपने हीरो- फुलेअम्बेडकरपेरियारमंडल और वीरांगना फूलन के मत और वैचारिक प्रतिबद्धता को सबसे आगे रखते हुए, एक मुकम्मल विशेषांक की परियोजना को जारी रखायदि मेरे मन में लेशमात्र भी खोट होती तो मैं इस विशेषांक की योजना वहीं बंद कर देताl
मैंने उसी “मंडल कमीशन” से मिले 86 हजार रूपये खर्च करते हुए– तुलसी राम विशेषांक भाग-1 का संपादन किया, जिस मंडल कमीशन का आदरणीय तुलसी राम ने घोर विरोध किया थायदि यह “मंडल कमीशन” न होता तो मैं यह विशेषांक कभी भी सम्पादित नहीं कर पाताइसके बाद भी मैंने “मंडल कमीशन” के विरोध में लिखे गये लेखों को इसलिए नहीं लगाया कि ओबीसी की जो पहली स्कॉलर और इंटलेक्चुअल जनरेशन एकेडमिक्स में आई है जो आदरणीय तुलसी राम सर के व्याख्यात्मक चिंतन से प्रेम करती हैइसको पढ़ने के बाद उनसे नफरत करने लगेगीl उन्हें हिकारत भरी नज़रों से देखेगी| जिससे आदरणीय तुलसी राम की छवि ख़राब होगीl ...आपके इस आरोप के बाद मैं अपने आपको अपराध ग्रस्त पा रहा हूँइस स्थिति में मैं आधुनिक राष्ट्रनिर्माण के महानायक मेरे हीरो बी.पी. मंडल से सबसे पहल “सॉरी” बोलता हूँआज मैं महसूस कर रहा हूँ मैंने आपके बौद्धिक और ऐतिहासिक संघर्ष से मिली हक की ऊर्जा को गलत जगह नष्ट कर दियाआपसे रियली सॉरीl
आपके इन आरोपों ने इतनी गहरी चोट किया है कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं तुलसी राम विशेषांक भाग-का शानदार संपादन करके भी न किया वरन एक बेईमान संपादक हूँसम्पादकीय प्रतिबद्धता को मैंने खो दियामैं उस स्त्री की आवाज को उठा नहीं सका जो 63 सालों से बोलना चाहती हैआज आपने ऐसी स्थिति में मुझे लाकर खड़ा कर दिया है कि मैं अवाक हूँ!
21. आपने इतना दुःखी कर देने वाला आरोप लगाया है कि मैं आज इस “प्रतिउत्तर” के माध्यम से घोषणा करता हूँ कि तुलसी राम विशेषांक भाग-और तुलसी राम विशेषांक भाग-का संपादन अब नहीं किया जायेगालगभग तैयार हो चुके 412 पृष्ठों के तुलसी राम विशेषांक भाग-के अतिथि संपादक सखा रामबचन यादव सृजन से सॉरी बोलता हूँआप जो लंबी भूमिका लिख रहे थे उसे अब लेख में बदल दीजिएसॉरीतुलसी राम विशेषांक भाग-जो 220 पृष्ठ तक टाईप हो गया हैइसके अतिथि संपादक सखा आशीष दीपांकर आप से भी सॉरी जो आप इस भाग पर बहुत ही शाईलेंटलि कार्य कर रहे थेये दोनों भाग 2018 और 2019 में आतेआप सबके इस सहयोग से मिले स्पेस से मैं हजार से अधिक पृष्ठों की “पेरियार ललई ग्रंथावली” पर कार्य कर सकाइसके लिए आप दोनों का हृदय से आभारआगे आदरणीय तुलसी राम सर पर और भी कार्य करने का मन थाउस हेतु भी बहुसंख्यक समाज से सॉरीसाथ ही एक विनम्र अनुरोध कि जो भी व्यक्ति आदरणीय तुलसी राम पर आगे कार्य करे वो 'युवा वेदीपत्रिका में सन् 1968 से 69 के बीच 'नक्सलवाद की कुल्हाड़ीशीर्षक से श्रृंखलाबद्ध छपे छ: लेख खोज कर जरूर खोजेl
22. एक बात स्पष्ट कर दूँ कि उनकी पहली पत्नी राधा देवी का प्रकरण समाज के सामने आने के बाद आप इतना हड़बड़ा गईं कि आनन-फानन में यहाँ तक कहने लगीं की लोग 'प्रोफेसर तुलसीराम के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछाल रहे हैंl' मेरा इतना बड़ा कद नहीं है कि मैं आदरणीय तुलसी राम के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछाल सकूँनिःसन्देह राधा देवी उनके जीवन का स्याह पक्ष बन प्रस्तुत हुईं हैंलेकिन मात्र इसी कारण उनके कृतित्व और चिंतन को ख़ारिज नहीं किया जा सकता हैउनके मिथकधर्मसंस्कृतिदर्शनसाहित्य आदि पर किए गए चिंतन को नकारा नहीं जा सकताकोई भी समकालीन दलित/ओबीसी चिंतक उनसे बड़ी वैचारिक लकीर अभी तक नहीं खींच सका हैl
अब जब राधा देवी का प्रकरण उजागर हो गया है तब आदरणीय तुलसी राम के स्त्री प्रश्न पर नए सिरे से विचार होगासाथ ही यह भी सत्य है कि राधा देवी विमर्शकारोंचिंतकोंसाहित्यकारों के समक्ष ऐसा प्रश्न बन खड़ी हैंजिसे हजारों साल से हर जाति और वर्ग के पुरुष ने कोख में दबाने की भरपूर कोशिश की है
अब तक मैं दलित साहित्य और स्त्री विमर्श में दोहरे अभिशाप के प्रश्न को पढ़ रहा था लेकिन राधादेवी चौहरे अभिशाप के प्रश्न के रूप में खड़ी हैं-
1. पितृ सत्ता द्वारा शोषण की शिकार
2. सवर्ण स्त्री द्वरा दलित स्त्री के शोषण की शिकार
3. दलित पुरुष द्वारा दलित स्त्री के शोषण की शिकार
4. दलित स्त्री द्वारा दलित स्त्री के शोषण की शिकार
यह 'चौहरा अभिशाप' l चौथे पायदान का शोषण हैसॉरी अंगीरा चौधरी मैं दलित स्त्री द्वारा दलित स्त्री के शोषण का सन्दर्भ आपसे एकदम नहीं ले रहा हूँयह बात मैं सार्वजनिक परिप्रेक्ष्य में बोल रहा हूँl
23. आप आगे लिखती हैं- "आपको (राधा देवी) को न्याय मिले न मिले लेकिन शायद इनको नौकरियां मिल जाए। आज के दौर में ऐसे भी हम दलितों पिछड़ों को नौकरियां मिलनी कठिन हो गई हैं। सुन रही थी कि मुर्दहिया और मणिकर्णिका को कॉलेज की किताबों में शामिल करने की बात चल रही थीऐसे में उम्मीद है कि इन्हे जल्दी ही नौकरी मिल जाएगी और फिर कभी किसी और का विशेषांक निकालने की नौबत नहीं आएगी।" मैं हैरान हूँ कि आप राधा देवी प्रकरण के सार्वजनिक हो जाने के बाद मुझ पर कैसे-कैसे आरोप लगा रही हैं जब यह प्रकरण सामने नहीं आया था तब आप क्या क्या कहती थींआपको बता दूँ कि जब मैं तुलसी राम सर पर विशेषांक का मन बनाया तब वे अस्वस्थ थेउन्हें जिस सुबह मैं 'तुलसी राम विशेषांकका ड्राफ्ट दिखाया अर्थात् जनवरी, 2015 में  उस सुबह भी सर अस्वस्थ थेसर ड्राफ्ट पढ़कर धीमे स्वर में बोलेइसमें जिन लोगों से आप संस्मरण लिखवा रहे हैं- उनमें से इन इन लोगों से आप मत लिखवाईएये लोग मेरे विरोधी हैंl' मैंने कहा- ठीक है सर नहीं लिखवाऊंगासर ने जिन जिन लोगों से नहीं लिखवाने के लिए कहा वो jnu के कुछ प्रोफेसरों के नाम थेइसके बाद भी मैं विशेषांक में उन लोगों से लिखवाया और जो मुझे सकारात्मक लगा उस प्रसंग को रखा बाकि सभी नकारात्मक चीजों का सम्पादन कर दियाआदरणीय तुलसी राम सर से 1 जनवरी, 2015 को मैं मिला और 13 फरवरी, 2015 को सर की मृत्यु हो जाती है|
१. यदि थोड़ी-सी भी मेरी मनोभावना ऐसी होती तो मैं उसी समय तुलसी राम विशेषांक की योजना बंद कर देता कि अब इस व्यक्ति से मुझे कोई लाभ नहीं मिलने वाला हैl
२. आप कह रही हैं 'कुछ कॉलेजों में लग जायेगीl' आपको पता ही नहीं है कि आपके पिता की आत्मकथा कहाँ कहाँ पढ़ाई जाती हैआप कॉलेज में लगजाने की बात कर रही हैं जबकि उनकी आत्मकथा ‘मुर्दहिया’ विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही हैप्रोफेसर कालीचरण स्नेही सर ने जब लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पाठ्यक्रम में ‘मुर्दाहिया’ को लगवाया, तब वहाँ हंगामा बरप गयाl एक प्रोफेसर ने सार्वजनिक रूप से कहा कि मुर्दहिया के पाठ्यक्रम में लगने से विश्वविद्यालय में अश्लीलता फैलेगी| इसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए, सबाल्टर्न आलोचक वीरेंद्र यादव ने 'मुर्दहिया से डर क्यों?' शीर्षक से एक गंभीर लेख लिखा| जिसमें उन्होंने प्रतिगामी शक्तियों के वर्णाश्रमी मन को उजागर कियाशायद आपको यह सब पता न हो और ईडियट पत्रकार को तो एकदम नहीं पता होगावैसे उसे पता भी होगा तो वो छुपा लेगाl

आपको बता दूँ जब तुलसी राम पर "बहुजन वैचारिकी" का विशेषांक प्रकाशित हुआ तब देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं ने इस विशेषांक को सराहा कई प्रतिष्ठित साहित्यकार-पत्रकार विशेषांक पढ़ने के बाद मुझे प्रोत्साहित किएl जमकर तारीफें कीं| लेकिन "कुछ अपने ही लोग" विशेषांक आने के बाद एकदम मातम मनाने लगे थे जबकि उन्हें सबसे अधिक ‘प्रसन्न’ होना चाहिए थाl
५. मैंने जिस देश-काल में तुलसी राम पर विशेषांक निकालाउस खतरनाक स्थिति-परिस्थिति का आपको अंदाजा नहीं हैजिस समय सम्पूर्ण देश प्रतिगामी ताकतों के समक्ष घूटने टेक रहा होउस दौर में मैंने प्रतिरोध करने वाले ‘व्यक्ति’ पर ‘विशेषांक’ निकालाl




यह मेरे हीरो- फुले, अम्बेडकर, पेरियार, मंडल और वीरांगना फूलन की मानवतावादी वैचारिकी के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतिफल है कि मैं इस निहायत ही कठिन देश-काल में उस महान व्यक्तित्व के साहित्य और चिंतन की खोज कर रहा हूँ, जिस व्यक्ति ने उत्तर भारत में ‘मनुवाद’ की चूलें हिला दिया थाजिसके साहित्य और चिंतन से आज भी सम्पूर्ण ‘काउ बेल्ट’ (Cow Belte) थरथर थरथर काँपता है जो आज भी उत्तर भारत में ‘मनुवादी’ ताकतों के प्रतिरोध का सबसे बड़ा प्रतीक हैइससे बड़ा प्रतिरोध का ‘प्रतीक’ सम्पूर्ण उत्तर भारत में शायद ही कोई हुआ होजिसने अपना सम्पूर्ण जीवन वर्चस्ववादी ताकतों से लड़ते हुए बीता दिया होमैं 1 सितम्बर, 2015 से अपने “कैरियर” और “जीवन” को दाव पर लगाकर उस महान विभूति के साहित्य और चिंतन को खोज रहा हूँआपको/बहुसंख्यक समाज को अपने इस “जमीनी शोधपरक” कार्य के बारे में क्या क्या बताऊँ! बस आगाह कर दूँ कि इस महान कार्य की वजह से हो सकता है इस देश की प्रतिगामी शक्तियाँ मेरी ‘हत्या’ भी कर दें| जिसके लिए मैं तैयार हूँ| दृढ़ हूँ| मेरे पास अपनी महान विभूतियों का “विजन” है| उस “विजन” के लिए ही मैं “जिन्दा” रहना चाहता हूँ| उस विजन के लिए ही मैं “मरना” चाहता हूँ|



24. आप आगे लिख रही हैं-- "मुर्दहिया और मणिकर्णिका की कितनी ही बातें उन्होंने मुझसे ढेरों बार बताई थी। जो नहीं बताई वो उन्होंने नहीं लिखा।" जो बात आपको आदरणीय तुलसी राम नहीं बता पाये वो राधा देवी बता रही हैंमणिकर्णिका में पेज नम्बर 36 पर आदरणीय तुलसी राम 'बी.एच.यू. माई की गोंद' में लिखते हैं कि-"बनारस पहुँचने के तुरंत बाद मैं बस से एक बार फिर आज़मगढ़ चला गयाऔर इंटर की मार्कशीट लेकर दूसरे दिन वापस आ गयाl....तपसी राम बहुत खुश हुएमैंने उनका 20 रूपया उनके मना करने के बावजूद भी लौटा दियाकलकत्ता से जो कुछ अर्जित किया था उसमें से अब पचास रुपये ही बच पाये थेबी.एच.यू. में पढ़ने के लिए मैंने बी.ए. का फॉर्म तो भर दिया था किंतु पूरी फ़ीस यानि 120 रुपये जमा करने का संकट ज्यों का त्यों बना रहाएडमिशन फॉर्म में मैंने स्थाई पता वाले कॉलम में गाँव का पता भर दिया थाअतः ऐडमिशन हो गयाl" ध्यान दीजिएआदरणीय तुलसी राम यह नहीं बताते हैं कि यह 120 रुपये कहाँ से आयेवे सीधे कहते हैं कि ‘मेरा एडमिशन हो गयाl...’ वे लिख रहे हैं- "बनारस पहुँचने के तुरंत बाद एक बार फिर मैं बस से आज़मगढ़ चला गया l" जबकि वे अपने घर मुर्दहियाधरमपुरआज़मगढ़ गए थेजिसे उन्होंने नहीं लिखावे घर पर अपनी पत्नी राधा देवी से 120 रुपए माँगते हुए रोने लगेजिस पर राधा देवी ने कहा कि- आप मेरे पिता के पास जाईये| उनसे पैसा माँग लीजिये| भाई कोईलरी(कोल माईन) से कमा रहे थे| उसके बाद तुलसी राम राधा देवी के घर अर्थात् अपने ससुराल जाते हैंजहाँ वे राधा देवी के पिता से 120 रुपये के संकट को बताते हैंl एक जोड़ी बैल खरीदने के लिए कोईलरी(कोल माईन) से उनके भाईयों ने 120 रुपाये भेजा था| जिसे राधा देवी के पिता जी ने तुलसी राम को दिया| उसके बाद तुलसी राम सर का बी.एच.यु. में एडमिशन हुआइस बात को तुलसी राम भले ही मणिकर्णिका में नहीं लिखे हों लेकिन राधा देवी इस सत्यता को वीडिओ में स्वयं बताती हैंआगे जब जब पैसे का संकट आया तब तब वे घर गए राधा देवी के सामने उन्होंने इस संकट को कहा- राधा देवी की चिंता यह थी कि तुलसी राम की पढ़ाई न रूकेअब राधा देवी के गहनों की बारी थीइस बार जब राधा देवी से पढ़ाई के संकट से निकलने के लिए सहयोग मांगते हैं तब उनके पास ढेर सारे सोने-चाँदी के गहने ही बचे होते हैंl इन गहनों को तुलसी राम बेचने को कहते हैंगहनों के प्रति औरत का जो सम्मोहन होता है वह राधा देवी में भी था| इस कारण वे अपने गहने बेचने से हिचकती हैंइस पर तुलसी राम उन्हें आश्वासन देते हैं, जिसे राधादेवी वीडियो में कहती हैं, कि चाँदी के गहने की क्या चिंता करती हो मैं तो तुम्हारे पैर तक में सोने के गहने बनवा दूँगाराधा देवी कहती हैं कि मैं भी सोची कि मेरे आदमी का जीवन बन जाएगा तो ये गहने क्या हैंइस वजह से गहने बेच दियाजब मेरा सब कुछ बिक गयाउसके बाद तुलसी राम कभी लौट कर नहीं आयेमैं पूरा जीवन इंतज़ार करती रह गईकृपया ध्यान दीजियेगा ये सारी बातें मैं नहीं कह रहा हूँ मणिकर्णिका और राधा देवी स्वयं कह रही हैंl
वैसे आदरणीय तुलसी राम सर की दूसरी पत्नी प्रभा चौधरी भी अपने साक्षात्कार में कहती हैं कि “वे (तुलसी राम) बस एक ही चीज मुझे नहीं दिलाते थे| और वह चीज जब कभी माँगती थी तो वे भड़क जाते थे, वह था “गहना”|” (बहुजन वैचारिकी, पृष्ठ नम्बर-174) आदरणीय तुलसी राम “गहने” की माँग रखते ही “भड़क” जाते थे| यह “भड़कना” दरअसल ‘प्रायश्चित का मूल्य बोध’ था, जो बार बार “गहनों” की पुरानी स्मृति को जिन्दा कर देता था|
25. आपके पिता जी आदरणीय तुलसी राम आपके साथ ईमानदार थेसही हैमैं आपसे ऐसा कहीं नहीं पूछ रहा हूँआदरणीय तुलसी राम की ईमानदारी पर यह राधा देवी सवाल उठती हैं कि जब पढ़ना था तब उन्होंने मेरे सोने चाँदी के गहने बेचवा दिए और आश्वासन दिया कि चाँदी के पायलों की चिंता क्या करती हो मैं तो तुझे सोने की पायलें गढ़वा दूँगायह बात राधा देवी वीडिओ में स्वयं बोलती हैंअमूमन इस देश में पैरों में सोने के गहने पहनने का चलन नहीं हैवो आगे कहती हैं कि उन्होंने मुझे धोखा दियावो श्राप देती हैं हे प्रभु जो मेरे साथ ऐसा किया आप भी उसके साथ ऐसा कीजियेगाअमूमन परंपरागत भारतीय औरत अपने सुहाग को ऐसा श्राप नहीं देती हैंl
26. आपने लिखा- "मेरी माँ और मैं अपने पिता द्वारा छोड़ी अकूत सम्पति पर जो सिर्फ आपका हक़ है पर जबरदस्ती गैरकानूनी ढंग से कब्ज़ा जमाए बैठे हैंl" आप पर यह आरोप मैंने कब और कहाँ लगायाया किससे मैंने यह बात कही थीआपको यह भी लिखना चाहिए थासोशल मीडिया पर यह सवाल उठा था कि तुलसी राम की पहली पत्नी राधा देवी भूखमरी की शिकार हो गई हैं। वे भूख से मर रही हैं। जबकि उनकी बेटी करोड़, 22 लाख के घर में रहती हैंइस बात के आधार पर आपने मुझ पर आरोप जड़ दियाजबकि मुझे प्रसन्नता है कि मेरे जिन पुरखों को घास-फूस तक का घर मयस्सर नहीं था उनकी संताने आज करोड़ों के घर में रहती हैंl
27. आप कह रही हैं कि- "उन्होंने समाज के बकवास नियमों से विद्रोह करने का निर्णय लिया!" सबसे पहले बता दूँ कि यह ईडियट पत्रकार का गढ़ हुआ तर्क हैइस प्रसंग को उस ईडियट पत्रकार ने पहले ही फेसबुक पर लिखा थाजो पत्र में भी जस का तस रख दिया हैl ....खैर यदि यह उनका विद्रोह होता तो वे इसे मुर्दहिया में अवश्य लिखते कि मेरा बाल विवाह राधा देवी से हुआ थामैं इस कुप्रथा को नहीं मानता हूँ इसलिए समाज में प्रचलित इस बकवास नियम से मैं विद्रोह करता हूँ इस कारण मैंने दूसरी शादी कर लीl .... मुझे हैरानी हो रही है कि आदरणीय तुलसी राम ने ‘मुर्दहिया’ मरे जानवरोंगिद्धों और नटिनिया तक का इतना रोचक वर्णन किया है लेकिन राधा देवी के लिए एक हर्फ़ भी नहीं लिखे! 
28. आप लिख रही हैं- "मैं बिल्कुल समझ सकती हूँ कि इस समाज में खासकर हमारे समाज में महिलाओं की जो स्थिति है शायद आप पापा को अकेले नहीं ढूंढ पातीं।  लेकिन आपके तो भाई थे। विसारिया जी की ही बातों से पता चलता है कि ऐसी स्थिति तो थी ही कि भाई आपकी मदद करते। उनके लिए तो ढूँढना मुश्किल न था अगर उन्हें नहीं पता रहा होगा तो।" इसका उत्तर राधा देवी वीडिओ में स्वयं देती हैंवे कहती हैं कि ‘इस घर के लोग उन्हें पानी पीने के लिये भी नहीं पूछते थेतो पता कहाँ से बतातेपता पूछने पर ये लोग कहते थे पता नहीं कहाँ रहते हैंजब तुलसी की मृत्यु हो गई तो यह बात भी पूरे गाँव में किसी को नहीं पता चलीघर से सिर्फ दो लोग चुपके से दिल्ली गएबहुत बाद में सबको पता चलाl’ दूसरे राधा देवी स्वयं कहती हैं कि अंजान जगह कोई मार काट के फेक दे तो मैं क्या कर लूंगीl
29. आपने लिखा है कि ‘मेरे पिता के ऊपर कीचड़ उछालनेउनके खिलाफ षड्यंत्र रचनेमेरा और माँ के चरित्र हनन करने की इन लोगों की कोशिश हैजिसे मैं सफल नहीं होने दूँगी l’ सच कहूँ तो आपके पिता और बहुसंख्यक समाज के वैचारिक व्याख्याता आदरणीय तुलसी राम पर कीचड़ तो उस ईडियट पत्रकार ने उछाला है| षड्यंत्र तो उस ईडियट पत्रकार ने रचाजब राधा देवी प्रकरण सार्वजनिक हुआ तब आप सिर्फ एक वाक्य लिखतीं- 
१. 'मैं राधा देवी से मिलूँगी, और जो बन पड़ेगा मदद करुँगीl'सारी बात और बहस यहीं खत्म हो जातीl
30. आपको बता दूँ उस ईडियट पत्रकार से मेरी बिल्कुल नहीं जमतीमौका देख कर उसने आपको मेरे खिलाफ ढाल बनाते हुएअपनी नस्लीय अदा का परिचय देते हुए, अपना टसन निकाल लियाउसने एक शानदार लेटर ड्राफ्ट करेक 'मनुकालपत्रिका की वेब साईट पर टांग दियाजिससे आदरणीय तुलसी राम के इस राधा देवी प्रसंग को पूरी दुनिया तब तक देखती रहे जब तक पत्रिका इंटरनेट पर जिन्दा रहेकीचड़उछालने और षड़यंत्र रचने को आप यहाँ से देखियेयह ईडियट पत्रकार आपको एक बार भी यह नहीं कहा होगा कि आप अपने शुभ चिंतक शोधार्थी साथियों से बात कर लीजिएआदरणीय तुलसी राम सर को जो जो प्रोफेसर प्यार करते थेउनसे सुझाव ले लीजिएउस ईडियट पत्रकार ने आपको सीधे कहा होगा कि अंगीरा यह तुलसी राम सर की छवि ख़राब करने का ‘षड्यंत्र’ चल रहा हैतुम राधा देवी के नाम खुला ख़त लिख कर जवाब दोउसे मैं पत्रिका की साईट पर लगाउँगाआपने कुछ लिखा होगा लेकिन बात सीधी सरल रही होगीउसके बाद उस ईडियट पत्रकार ने उसे विधिवत ड्राफ्ट किया होगा
हमें यह स्वीकार करना होगा कि दरअसल राधा देवी एक ‘प्रश्न’ हैंजब तब उनका जवाब नहीं मिलेगा तब तक वो प्रश्न कर्ता बनी रहेंगीअब तक राधा देवी के पते गाँव- मुसवा हड़ौरापोस्ट- दौलताबादआज़मगढ़ पर न जाने कितने लोग गए हैं और अभी न जाने कितने लोग जा रहे हैं और आगे भी जाएँगेइस कारण अस्मिता के अंदर जो अस्मिता हैहमे उस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिएराधा देवी जैसी करोड़ों राधा देवी इस देश में प्रश्न बन कर घूम रही हैंसब मुँह खोलना चाहती हैंकिसका किसका मुँह बन्द किया जाएगासबसे जरूरी है कि उनके भूख के ‘सवाल’ को सुना जायअनसुना कर देनाउपेक्षा कर देनाठीक नहीं हैहम (पुरुष) उनके प्रश्नों की उसी तरह उपेक्षाकर रहे हैं जैसे इस समाजिक संरचना में हमसे ऊपर वाला वर्चस्ववादी व्यक्ति (पुरुष) हमारे प्रश्नों की उपेक्षा करता है| हजारों सालों से हमारे प्रश्नों का दमन करता चला आरहा है वैसे ही जैसे हम(पुरुष) राधा देवी के प्रश्नों का दमन करते चले आ रहे हैंलोकतंत्र में इस लाईन और ऑर्डर को ‘डिसमिस’ किया जाना चाहिए! राधा देवी यही चाहती हैंइसे हम सबको महसूस करना चाहिएl
....दरअसल राधा देवी के भूख का सवाल अंगीरा चौधरी का सवाल है ही नहींकारण कि परिवार जैसी संस्था से आदरणीय तुलसी राम ने भी विद्रोह किया था और राधा देवी ने भीइस कारण राधा देवी की भूखमरी का प्रश्न एक सार्वजनिक प्रश्न हैआदरणीय तुलसी राम को उनका परिवार पढ़ाना नहीं चाहता थापरिवार चाहता था कि वो घर पर रह कर ‘हल’ चलाएँ लेकिन उन्होंने विद्रोह किया ‘परिवार’ जैसी संस्था के इस निर्णय को नहीं माना और घर छोड़ दिया| उसी तरह आदरणीया राधा देवी परिवार जैसी संस्था से विद्रोह करती हैंजो परिवार उन्हें चुप रखने की पुरजोर कोशिश कर रहा था उससे आज उन्होंने विद्रोह किया हैl इस कारण राधा देवी एक “सार्वजनिक प्रश्न” हैंl
मुझे प्रसन्नता हुई जब रोहित वेमुला, अख़लाक़, चंद्रशेखर रावण और दिलीप सरोज के साथ इस देश का बहुसंख्यक समाज लाखों-कारोड़ों की सख्या में खड़ा दिखा| वे पुरुष और महिलाएँ सैकड़ों बार उनके समर्थन में प्रोटेस्ट करते दिखते हैं लेकिन दूसरे ही क्षण दुःख भी होता है कि जब राजस्थान में मेघना मीणा का रेप होता है और वो ट्रेन के ट्रैक पर कट कर आत्महत्या कर लेती हैएक बार भी प्रोटेस्ट नहीं  होता हैl  कुछ दिन पहले मोनी नाम की दलित लड़की को उन्नाव, उत्तर प्रदेश में दिन-दहाड़े भरे-चौराहे पर पाँच लड़कों ने जिन्दा जला दिया| एक भी प्रोटेस्ट नहीं हुआराबिया नाम की विधवा महिला के साथ प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश से पाँच दलित लड़कों ने रेप किया| हत्या कर दिया| एक भी व्यक्ति नहीं खड़ा हुआरेशमा देवी को जिला- बलिया, उत्तर प्रदेश में सामंतवादी ताकतों ने पेट्रोल छिड़क कर जिन्दा जला दिया| वह लाखों-करोड़ों की भीड़ एक बार भी नहीं दिखती! रोहित वेमुलादिलीप सरोजचंद्रशेखर रावणअख़लाक़ के समर्थन में खड़ी स्त्रियों के साथ यह पुरुष समाज क्यों नहीं खड़ा होता है‘पितृसत्ता से आजादी’, ‘मनुवाद से आजादी’, ‘ब्राह्मणवाद से आजादी’, ‘जेंडर जस्टिस लॉन्ग लिव’, ‘सामाजिक न्याय जिंदाबाद’ के नारे लगाने वाले लाखों करोड़ों पुरुषों की भीड़ कहाँ चली जाती है? इन नारों से गूंजती भीड़ क्यों चुप हो जाती है? वास्तव में यह पुरुषों के लिए पुरुषों की खड़ी पुरूष मानसिकता की भीड़ हैजबकि “स्त्री” पूरे देश के साथ खड़ी है यह पुरुष मन है वह स्त्रियों की नहीं पुरुषों की मुक्ति चाहता हैl
मैं अपनी बात ख़त्म करूँ उससे पहले
आदरणीया राधा देवी अम्मा आपसे से क्षमा चाहता हूँ कि आपके हक की आवाज को मैं तुलसी राम विशेषांक में उठाने का साहस नहीं जुटा पायाl
 बहन अंगीरा चौधरी आपसे भी मैं ‘सॉरी’ बोलता हूँ मैं जनता हूँ कि उस ईडियट पत्रकार ने खुले पत्र के माध्यम से गहरा “षड्यंत्र” किया हैपत्र में मुझ पर बहुत ब्रूटली आरोप लगाये गए, वो भी तुम-तड़ाम की भाषा मेंइस कारण प्रतिउत्तर देते हुए मैं भी कहीं कहीं सख्त हो गया हूँइसलिए भी ‘सॉरी’l
आदरणीया प्रभा अम्मा मुझे पता है आपको यह सब जानकर-पढ़कर बहुत तकलीफ होगीइस कारण आपसे  हाथ जोड़कर ‘सॉरी’ बोलता हूँlसच तो यह है कि आप सबका कोई कसूर ही नहींयह एक पुरूष की ख़ता हैजिसकी भरपाई आप सभी स्त्रियां कर रही हैंl
अम्मा ये पुरुष आपको महान सैन्धव सभ्यता के बाद कभी न्याय नहीं दिएउसके बाद भी आप सबने हमेशा उन पुरुषों पर विश्वास कियासच तो यह है कि अब लोकतंत्र और संविधान का समय हैइसमें स्त्रियों को अपने हाथोंउसी तरह लड़ना चाहिए जैसे अब दलितबैकवर्डआदिवासी पुरुष सवर्णों के हाथों नहीं लड़ना चाहतेमैं उसी संस्थान की घटना बताऊँ जहाँ आदरणीय... प्रोफेसर थेतब वे जीवित थेउसी संस्थान में एक ओबीसी/दलित पुरुष (रिसर्चर) ने एक दलित महिला रिसर्चर का साढ़े पाँच साल दैहिक शोषण किया और अंत में मुस्कुराकर अगली तलाश पर निकल गयाजब उस दलित लड़की ने स्वयं को छाला हुआ पाया तब उसने उसके खिलाफ सेक्सुअल ह्रासमेंट का केस करने की कोशिशें शुरू की लेकिन सारे दलितपिछड़ेआदिवासी रिसर्चरप्रोफेसर झुण्ड में आये बाघों की तरह उसे घेर लिएl वह लड़की जब जब अपने हक की आवाज के लिए मुँह खोलती पुरुष बाघ के पंजे उसके मुँह को तब तब बंद कर देतेवह लड़की अपने हक की आवाज के लिए मुँह खोलते खोलते थक गई लेकिन कभी भी उस लड़की की आवाज मुँह से बाहर नहीं आ पाईअर्थात् सेक्सुअल ह्रासमेंट का केस दर्ज नहीं करने दिया गयाएक रोज एक खूंखार बाघ पीछे से उस लड़की की गर्दन अपने जबड़े में पकड़ते हुए जोर से दबा दियाउसकी गर्दन से 'कट्टकी आवाज आई और उसकी आवाज सदा के लिए बंद हो गईउसकी बोलने वाली नस सदा के लिए टूट गईजब उस बाघ ने उसके गर्दन को अपने जबड़े से छोड़ा तो वह लड़की औंधे मुँह जमीन पर गिर गईअब वह बोल नहीं सकतीअब बस उसकी आंखें ही खुली हैं उसकी आंखों से आंसू बह रहे हैंअफ़सोस! जबकि उसी विश्वविद्यालय की जमीन पर रोज प्रोटेस्ट होता हैजोर जोर से नारा लगता है—‘पितृसत्ता से आजादी!’ ‘जेंडर जस्टिस लांग लिव’ जो पूरे देश में गूँजता हैl न्याय की आस में वो आँखें उसी तरह खुली पड़ी हैं जैसे पैंसठ सालों से एक टक एक आस में बैठी राह देख रही हैं राधा देवी इस अन्याय का सच सिर्फ इतना ही है कि आप दोनों स्त्री हैंl
मैं यहाँ एक अंतिम बात स्पष्ट कर दूँ कि इस ‘प्रतिउत्तर’ के बाद आगे किसी भी स्थिति में कोई ‘स्पष्टीकरण’ आदि नहीं दूंगा| मेरे पास इतना समय नहीं है कि ‘ईडियट पत्रकार’ की पागलपन भरी बातों पर अपनी बौद्धिक उर्जा नष्ट करता रहूँ| वह जिस मानसिकता से यह पत्र गढ़ा है। उसमें वह पूर्णत: सफल रहा किन्तु आगे मैं उसको इस तरह के किसी भी ‘षड्यंत्र’ में सफल होते नहीं देखना चाहता| मैं स्वयं दलित साहित्य का शोधार्थी रहा हूँ| ‘मुर्दहिया’ पर मैंने स्वयं एम.फिल. किया है| मैं स्वयं इसी परिवार का सदस्य हूँ| यह मेरा साहित्यिक घर है| मैं अपने घर को विध्वंस होते नहीं देख सकता| उस ईडियट पत्रकार के अगले किसी षड्यंत्र को सफल होते नहीं देख सकता| .....बड़ी मुश्किल से मेरा यह घर तैयार हुआ है|




बहन अंगीरा आपको एक बार सोचना चाहिए था जिस ईडियट पत्रकार के कहे अनुसार यह सब गढ़ा जा रहा हैउस ईडियट पत्रकार पर दलित बेटी के दैहिक शोषण करने का गंभीर आरोप चला थाउसे वर्धा यूनिवर्सिटीवर्धा से कई साल पहले सेक्सुअल ह्रासमेंट के केश में भगाया जा चुका हैउसकी ये कारगुजारियाँ यूनिवर्सिटी के दस्तावेजों में आज भी दर्ज हैंआये दिन पुलिस उससे पूछ-ताछ करती रहती हैआपको एक बार जरूर सोचना चाहिए था, जो व्यक्ति दलित बेटी का दैहिक शोषण करता है, वह दूसरी दलित बेटी के साथ कैसे खड़ा हो सका हैवह किसी दलित माँ के साथ कैसे खड़ा हो सकता हैमहान सैन्धव सभ्यता के बाद जिसके रक्त से पितृसत्ता का उदभव और विकास हुआ हो वह बहुसंख्यक/बहुजन बेटी-माँ के साथ खड़ा भी होगा तो किस नियति से! यह ‘नियति’ भूख से तड़पती राधा देवी की भूख को कभी समझ नहीं सकतीबहुत चालाकी से उसने एक दलित महिला को सामने खड़ा करके भूख से मरती दूसरी दलित महिला की आवाज को सदा के लिए बंद कर दियामैं महसूस कर रहा हूँ कि इसी तरह ईडियट पत्रकार के पुरखों ने लिख लिख कर मेरे करोड़ों पुरखों के “भूख” के “सवाल” को निगल लिया होगा| वे तड़प तड़प कर मर गये होंगे| उनकी “भूख” कभी "सवाल" ही नहीं बन पाई होगीl सच तो यह है कि ये ‘पुरुष’ हैं जो ‘औरत’ की भूख को कभी महसूस नहीं कर पाए| इसलिए मैं उन सभी आदिवासीदलितपिछड़ीअल्पसंख्यक और सवर्ण "महिलाओं" से अपील करता हूँ कि भूख से मरती राधा देवी को न्याय मिले न मिले लेकिन वो भूख से न मरने पाएँउनसे मिलेंजो भी बन पड़े कुछ न कुछ जरूर "आर्थिक सहयोग" करेंl ‘भूख की तड़प से उन्हें बाहर निकालें| यह न हो कि-- चारछः महीने या साल के अंदर ही सोशल मीडिया पर कोई फ़ोटो वायरल हो जाए जिसमें लिखा हो- “भूख से तड़प तड़प कर मर गईं राधादेवी!!”
!! 
इस दुनिया में संवेदना और मनुष्यता सबसे ऊँची चीज है !!
जोहार अम्बेडकर
जोहार मंडल !!!


-धर्मवीर यादव गगन 
 शोधार्थी, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय 

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