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भाजपा के सहयोग से ही पहली बार मुख्यमंत्री बने थे लालू, मुलायम, मायावती, नीतिश

भारतीय जनता पार्टी के बारे में सामान्‍य अवधारण यह है कि यह पार्टी राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की एक राजनीति शाखा है और इसकी विचारधारा उग्र हिन्‍दूत्‍व की है। लेकिन भारतीय, जनता और पार्टी इन तीन शब्‍दों के निर्माण काल और परिवेश पर गौर करें तो भाजपा भी जनता परिवार की एक सदस्‍य रही है। जनता परिवार के सामाजवादी आंदोलन से इस पार्टी के नेता इतने प्रभावित लगते हैं कि उन्‍होंने 23 जनवरी 1977 को स्‍थापित जनता पार्टी के आगे केवल भारतीयशब्‍द का इस्‍तेमाल किया है। इसी पार्टी के नेता पहले भारतीय जनसंघ नाम से पार्टी चलाते थे जो राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से प्रभावित नाम लगता है। भारतीय जनता पार्टी की स्‍थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी। इस समय जनता परिवार का सामाजवादी आंदोलन अपने चरम पर था और उसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता भी शामिल थे।




विशेषकर बिहार और उत्‍तर प्रदेश के चुनाव के समय ऐसा लगता है कि दो जानी दुश्‍मन (भाजपा और जनता परिवार) आमने सामने हैं। जबकि सच्‍चाई यह है कि भाजपा और जनता परिवार के अधिकतर नेता जेपी के समाजवादी आंदोलन से ही निकले हैं। यहां तक कि 1977 में जनता पार्टी सरकार में ये सब लोग एक ही पार्टी के सांसद और मंत्री थे। इतिहास पर गौर करें तो आपातकाल 1975-76 के समय गैर-कांग्रेसी दलों में भारतीय लोक दल, भारतीय क्रांति दल, स्‍वतंत्र पार्टी, प्रजा सोशलिस्‍ट पार्टी, संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी, उत्‍कल कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (आर), कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी के साथ विलय करके जनता पार्टी का निर्माण किया गया था और इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी को हराना था।

जनता पार्टी पहली ऐसी राजनीतिक पार्टी थी जो कई विचारधाराओं और छोटे-बड़े दलों को जोड़कर बनी थी। इस पार्टी का उद्देश्‍य आपातकाल का विरोध करना और विचारधारा की सीमाओं से ऊपर उठकर एक साथ इकट्ठा होना था। पार्टी में समाजवादी, गांधीवादी और राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के नेता थे। फिर भी एक साझा कार्यक्रम बनाया गया। इसमें राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ द्वारा समर्थित राष्‍ट्रीय जनसंघ का भी विलय हुआ था। इसके प्रमुख नेताओं में नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्‍ण आडवाणी और सुब्रमण्यम स्‍वामी स्‍वामी थे। भारतीय जनसंघ का गठन 21 अक्‍टूबर 1951 को श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिल्‍ली में किया गया था।

इसी जनता पार्टी के टिकट से 1977 में लालू प्रसाद छपरा से, चंद्रशेखर बलिया से, चौधरी चरण सिंह बागपत से, मधु दंडवते राजापुर से, मोरारजी देसाई सूरत से, नानाजी देशमुख बलरामपुर से, जॉज फर्नांडीज मुजफ्फरपुर से, जगजीवन राम सासाराम से, रामजेठमलानी मुंबई (उत्‍तर पश्‍चिम) से, मुरली मनोहर जोशी अलमोड़ा से, मधु लिमए बांका से, विजय कुमार मल्‍होत्रा दक्षिणी दिल्‍ली से, बीपी मंडल मधेपुरा से, जनेश्‍वर मिश्रा इलाहाबाद से, करिया मुंडा खूंटी से, बीजू पटनायक केंद्रपारा से, नीलम संजीव रेड्डी नाडयाल से, सुब्रमण्यम स्‍वामी मुंबई (उत्‍तर पूर्व) से, कुशाभाऊ ठाकरे खंडवा से, कर्पूरी ठाकुर समस्‍तीपुर से, हुकमदेव नारायण यादव मधुबनी से, रामविलास पासवान हाजीपुर से तो अटल बिहारी वाजपेयी नई दिल्‍ली से सांसद थे। उस समय लालकृष्‍ण आडवाणी गुजरात से राज्‍य सभा के सदस्‍य थे।


जनता पार्टी की सरकार 1980 तक चली जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री और लाल कृष्‍ण आडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री थे। 1980 के बाद आपसी अहंकार के कारण जनता पार्टी टूट गई। अलग-अलग विचारों के नेता अपनी अलग-अलग पार्टी बनाने लगे। लेकिन इनमें एक बात सामान्‍य रही की कि ये सभी लोग अपनी पुरानी पार्टी के नाम के जनताशब्‍द से अपना नाता जोड़े रखा। जैसे, भारतीय जनता पार्टी, जनता दल, राष्‍ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी जनता पार्टी, बीजू जनता दल, जनता दल सेकुलर।




1977 में जनता पार्टी की केंद्र में सरकार थी जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्‍ण आडवाणी मंत्री थे। उसी सरकार ने मंडल आयोग की स्‍थापना की थी। लेकिन जब 7 अगस्‍त 1990 को मंडल आयोग की 13 में से एक अनुशंसा को लागू करने की घोषणा की गई तो भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने राम मंदिर का आंदोलन छेड़ दिया जिसको पहले से ही कांग्रेस हवा दे रहीथी। उन्‍होंने 25 सितंबर 1990 को अपनी सोमनाथ से अयोध्‍या की रथ यात्रा शुरू कर दी। जिससे देश भर में साम्‍प्रदायिक हिंसा होने लगी। 24 अक्‍टूबर 1990 को बिहार सरकार ने उन्‍हें समस्‍तीपुर में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने जनता परिवार से नाता तोड़ लिया और केंद्र में वीपी सिंह की नेतृत्‍व वाली जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके साथ ही उत्‍तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्‍व वाली सरकार और बिहार में लालू प्रसाद वाली सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद की सरकार तो बच गई लेकिन केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई।

फिर जब 1999 आते-आते मंडल आंदोलन पूरी तरह झुलस चुका था और मंदिर आंदोलन भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर अपने मोहमाया से मुक्‍त हो गया था, तब फिर एक बार जनता परिवार के नेताओं ने गठबंधन किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में राष्‍ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद को छोड़कर बाकि जनता परिवार के सभी नेता शामिल थे। इसके साथ ही कई राज्‍यों में भी भाजपा अपने पुराने जनता परीवार के साथियों के साथ राज्‍य सरकार में गठबंधन सरकार में शामिल रही है। उड़ीसा में बीजू जनता दल के साथ थी तो बिहार में जनता दल यूनाइटेड के साथ। वहीं 2003 में उत्‍तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार को परोक्ष रूप से मदद करने की बात भी मीडिया में चर्चा का विषय रही है। 

वर्तमान में जो नरेन्‍द्र मोदी की केंद्र में सरकार है उसमें तो भाजपा के 100 से ज्‍यादा सांसद कांग्रेसी है और बाकी जनता परिवार के पुराने सहयोगी शामिल हैं। अभी केवल लालू, मुलायम भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं। वैसे चाहे लालू प्रसाद हों, मुलायम सिंह यादव हों, नीतिश कुमार हों या मायावती। ये सभी लोग पहली बार मुख्‍यमंत्री भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से ही बने थे, न कि कांग्रेस के।




जब 10 मार्च 1990 को लालू प्रसाद, 3 मार्च 2000 को नीतिश कुमार, 5 दिसंबर 1989 को मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्‍यमंत्री की शपथ ले रहे थे, तो इनकी सरकार में भाजपा प्रमुख सहयोगी पार्टी थी। मायावती 3 जून 1995 को मुलायम सिंह के सहयोग से तो 21 मार्च 1997 को भाजपा के सहयोग मुख्‍यमंत्री बनीं। अब आगे यह देखना दिलचस्‍प होगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने मध्‍य नाम जनताके सरोकार को कहां तक निभा पाती है। 

अंतत: 1977 की संपूर्ण क्रांति के उफान और तूफान से संगठित जनता पार्टी का विलय सुब्रमनियम स्‍वामी के नेतृत्‍व में 12 अगस्‍त 2013 को भारतीय जनता पार्टी में ही हो गया था।

-अमलेश प्रसाद 
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