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कहानी: बगैर मंजिल की राहें -लल्टू कुमार

२३ जून २०१२ दोपहर 3 बजकर कुछ मिनट, टेबल पर रखा सोनू का मोबाइल अचानक से थरथराने लगता है| डिस्पले पर उभरा नाम देखते ही वह चहक उठता है| मगर आज बातें सिर्फ़ दो मिनट ही हो पाती है और फ़ोन उधर से कट जाता है| फ़ोन कटते ही सोनू का चेहरा, जो अभी दो मिनट पहले तुरन्त खिले गुलाब की तरह था, अचानक तेज धूप में मुरझाये फूल सी हो गई| उनकी बातों पर तो सोनू को यकीन नहीं हुआ| मगर उसकी भयावहता चेहरे पर साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी|

सोनू कभी किसी से बेवजह की बातें नहीं करता है| वह दूसरों की मदद करने वाला हर किसी का दोस्त है| यूँ तो सोनू हर किसी को अपना दोस्त नहीं मानता, लेकिन जिसे मानता है उसका साथ हमेशा साये की तरह निभाता है| चाहे खुशी हो या गम ...


एक बार सोनू का सबसे लंगोटिया यार जिनका नाम मोनू है अपनी लापरवाही के चलते सड़क हादसे का शिकार हो जाता है| उस वक्त तो उसे कोई ख़ास नुकसान नहीं होता परन्तु धीरे-धीरे वह प्रेम रोग की चपेट में आ जाता है| दरअसल बात ये हुई कि जिस लड़की को देखने के चक्कर में उनका संतुलन बिगड़ा था| वह उसके बगल वाले गाँव के सरपंच की छोटी लड़की थी| सरपंच साहब और मोनू के पापा का एक दूसरे के यहाँ बराबर आना जाना लगा रहता था| घटना के दो दिन बाद ही मोनू के पापा ने मोनू को सरपंच जी के यहाँ किसी काम से भेज दिया| वहाँ जाकर पता चला कि सरपंच साहब घर पे नहीं है| वे किसी काम से दूसरे गाँव की तरफ़ गए हुए थे| मोनू ने सोचा कि इतनी धूप में बिना काम किये वापस लौटकर जाने से बेहतर है कि कुछ देर यहीं बैठकर इंतजार कर लिया जाय| यह सोचकर वह सामने पड़ी खाट पे लेट गया और अपनी आँखे बंद कर ली| जेठ की दोपहरी में सामने के बगीचे से आ रही ठंढी हवा के कारण मोनू को कब नींद आ गई इसका उसे कोई अंदाज़ा नहीं रहा| पर जब उसकी आँखे खुली तो देखा सामने वही लड़की लोटा में पानी ले कर खड़ी थी जिसे देखने के चक्कर में उस दिन वह मरते मरते बचा था| मोनू ने उसे देखा और उसने मोनू को कुछ देर अपलक...| फिर दोनों की पलकें शर्माकर झुक गई| मोनू खाट से उठा और सीधा अपने घर की तरफ वापस आ गया|


हमेशा दोस्तों के बीच इधर-उधर की बातें करने वाला मोनू अब सिर्फ़ पढ़ाई-लिखाई की बात करता था और बहुत कम बोलता था| जहाँ बैठता, घंटों बैठा रहता| सोनू के लाख समझाने के बावजूद वह समय से कोई काम नहीं कर पाता| सोते-जागते वह उसी के ख्यालों में डूबा रहता था| जब भी पढ़ने बैठता तो सामने खुली किताब में काले-काले अक्षर की जगह उसे उसी लड़की का चेहरा नज़र आता| स्थिति ऐसी हो गई थी की मोनू को अपने हाल पर रोना आ रहा था| वह चाह कर भी उस लड़की से मिलने उसके घर नहीं जा सकता था| और न ही चिठ्ठी लिख सकता था| उसके पास अपने दिल को समझाने के लिए अकेले में बैठ कर रोने के आलावा कोई विकल्प नहीं था| मोनू के व्यवहार में हुए इस परिवर्तन को लेकर उसके सभी मित्र चिंतित रहने लगे| खास करके सोनू ...| एक दिन सोनू ने बड़े ही प्यार से इस व्यवहार के पीछे के कारण को जानने की कोशिश की| सोनू के प्यार से पूछने पर मोनू की आँखें डबडबा गई और आँसुओं के झरने फूट पड़े| वह बच्चों की तरह रोने लगा और रोते हुए उस दिन की सारी घटना सोनू को सुना दिया|

मोनू अपने माँ-बाप का अकेला बेटा था| उसकी एक बहन थी जो उससे उम्र में तक़रीबन छह साल छोटी थी| मोनू को बचपन से ही बड़े लाड़-प्यार के साथ रखा गया था और अपने परिवार की तथाकथित मरजाद का एहसास कराया गया था| उसे बताया गया था कि उसके दादाजी इस गाँव के जमींदार थे| वह खुद भी देख चुका है कि गाँव के लोग किस तरह दादाजी की इज्ज़त करते हैं| इसलिए वह कोई भी ऐसा कार्य नहीं कर सकता था जिससे समाज के लोगों को उनके परिवार के ऊपर ऊँगली उठाने का मौका मिले| उस समय मोनू की स्थिति दो पाटन के बीच फँसे आनाज के दाने की तरह हो गई थी| एक तरफ़ परिवार की मरजाद और दूसरी तरफ़ पहला प्यार ...|

वक्त गुजरा, स्थितियाँ बदली| मोनू का प्यार पढ़ने के लिए गाँव से शहर आने लगी| वो भी उसी संस्थान में जहाँ पहले से सोनू और मोनू पढ़ रहा था|

कहा जाता है कि वक्त से बड़ा बलवान कोई नहीं होता| और वक्त आज मोनू के साथ था| सोनू और मोनू दो जिस्म एक जान| अगर ये अपनी औकात पे आ जाये तो फिर तूफान भी घबराकर अपना रास्ता बदलने में ही अपनी भलाई समझता था| मोनू ने तय किया कि कल से सोनू आठवीं क्लास के कमज़ोर बच्चों को मुफ़्त में गणित का ट्यूशन पढ़ायेगा| और फिर दो-चार दिन पढ़ाने के बाद किसी न किसी बहाने से बीच-बीच में मोनू को भी पढ़ाने का मौका देगा| तय योज़ना के अनुसार अगले ही दिन से सोनू ने पढ़ाना शुरू कर दिया|

मोनू की सबसे बड़ी ख़ासियत थी कि वह बहुत अच्छा गाता था| दोनों मित्रों में इतनी गहरी दोस्ती थी कि जब सोनू उदास होता तो मोनू भी उदास रहने लगता| और फिर उसे मनाने के लिए एक के बाद एक रफ़ी, मुकेश और किशोर के दर्द भरे नगमे सोनू को सुनाये जाते| हाँ, एक बात बतलाना भूल गया मोनू जितना अच्छा गाता था सोनू उतना ही प्यार से सुनता भी था| दोनों की इस प्रतिभा से प्रेरित होकर गाँव के एक पढ़े-लिखे सज्जन ने कहा था कि अगर आचार्य रामचंद्र शुक्ल आज जिंदा होते तो मोनू को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ गायक और सोनू को सर्वश्रेष्ठ सहृदयी श्रोता की संज्ञा जरूर दे देते|

उस दिन मोनू अपने दोस्त के लिए गा रहा था| वही गीत जो वह बराबर गुनगुनाते रहता है - मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राहों में है, की तू कहीं भी रहे मेरी निगाहों में है ...

यह गीत आज भी सोनू को याद है| जब भी वह अपने दोस्तों के व्यवहार से दुखी होता है तो इसे बार-बार सुनता है| उसे उस वक्त मोनू की बहुत याद आती है| लेकिन, खैर ...

मोनू चाह कर भी सुमन का साथ नहीं दे सकता था और इधर सुमन धीरे-धीरे सोनू से प्यार करने लगी थी| समय के साथ परिस्थितियां बदलती गई, सोनू और सुमन एक दूसरे के क़रीब आते गए| इधर सोनू और मोनू को पढ़ने के लिए पटना भेज़ दिया गया|


आज से क़रीब आठ साल पहले शायद वो आम का महीना था| सुमन तीन महीने बाद हॉस्टल से घर आ रही थी| वो भी मात्र दो दिन के लिए| सोनू को जैसे ही ख़बर मिली कोई बहाना लेकर तुरन्त उसके घर जा पहुंचा| दोनों एक दूसरे से मिलकर काफी खुश दिख रहे थे| इसी बीच सुमन आने वाले कल को लेकर बातें शुरू कर देती है| वह सोनू से पूछती है – क्या शादी के बाद भी हमलोग इसी शहर में ऐसे ही रहेंगे?

सोनू – शादी के बाद हमलोग छुट्टियों में नए-नए जगहों पर घुमने जाया करेंगे| उसके बाद फिर मैं उस पर कहानियाँ लिखूंगा और शाम को जब तुम ऑफिस से लौटकर आओगी तो मैं तुम्हें कहानियाँ पढ़ कर सुनाऊंगा ...
सुमन – क्या तुम शादी के बाद भी ऐसे ही लफंगों की तरह जिंदगी जियोगे?


सोनू – लफंगा? यार!, कहानीकार बनना कोई छोटी-मोटी बात नहीं है| लोग इज्ज़त से नाम लेते हैं| तुमने रेणु को तो पढ़ा ही है| क्या जबरदस्त कहानी लिखे हैं – ‘तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफ़ाम’| गुलफ़ाम याने की दीवाना ...
सुमन – हाँ, मैंने रेणु के पारिवारिक स्थिति के बारे में भी पढ़ी है| पूरी जिंदगी आर्थिक संकट में गुजरी थी|
सोनू – तो क्या? लेखकों की जिंदगी तो ऐसे ही अभावों में गुजरी है| वैसे भी रचनाकार पैसों का नहीं प्यार का भूखा होता है| और पैसे से तो सिर्फ़ इंसान की ज़रूरतें पूरी होती है| जिंदगी जीने के लिए पैसों की नहीं, प्यार की ज़रूरत होती है| और रेणु इस मामले में बहुत धनी व्यक्ति थे|

अचानक सुमन की आवाज थोड़ी तेज हो जाती है और बात करने का अंदाज भी बदल जाता है| अपनी आवाज़ में रूखापन लाकर वह कहती है - सोनू तुम ग़लत हो, तुम सिर्फ़ अपनी सुनते हो| तुम्हें दूसरों की भवनाओं का जरा भी ख्याल नहीं रहता है| तुम जीवन में कुछ अच्छा नहीं कर सकते| तुम बाप की सम्पति पे पलने वाले लफंगों सी जिंदगी जी रहे हो| बताओ, तुम क्या दे सकते हो मुझे? ...
सोनू ने उस वक्त मुस्कुरा कर जवाब दिया था – ख़ुद की मेहनत से दो वक्त की रोटी और ढ़ेर सारा प्यार ...  

उस वक्त सोनू भले ही मुस्कुराता हुआ दिख रहा था लेकिन सुमन की अंतिम वाक्य ने उसे अन्दर तक झकझोर दिया था| वह मन ही मन बहुत कुछ सोच रहा था| कई बुरे और अच्छे ख्याल एक के बाद एक| मानों आँखों के सामने कोई बाइस्कोप लाकर रख दिया हो|

उनकी बातों का असर सोनू के ऊपर ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद जैसे वह ख़ुद को ही भूल गया था| अब वह हमेशा दूसरों की ही सुनता था| वह आज भी अपनी इच्छाओं की जगह दूसरे की भावनाओं को महत्त्व देता है| जबकि समय के साथ वो सारे रंग धीरे-धीरे धुंधले पड़ गए हैं| अब उसके सामने सिर्फ काली स्याह दीवारें और चंद जिम्मेदारियाँ रह गई है जो वक्त के हिसाब से एक दिन पूरी हो जाएगी |

शायद वो फ़रवरी का महीना था| सोनू और मोनू सुबह की धूप में बैठे अपने स्कूली दिनों को याद कर रहे थे कि कैसे वे जिम्मेदारियों की बोझ से बेखबर, बिना किसी तनाव के दिनभर इधर-उधर घुमा करते थे| सुमन को कैसे छेड़ते थे| बातों ही बातों में सोनू भावुक हो उठा और अपने दिल की गाँठे खोल दी तथा मोनू से अपना हाले दिल कह सुनाया| मोनू ने उसे गले से लगा कर साथ देने का वादा किया था और हमेशा खुश रहने की दुआएं भी माँगी थी|

आज ख़ुशी किसे कहते हैं यह सोनू के लिए कोई मायने नहीं रखता| वह हर बात में ही आसानी से ख़ुशी ढूंढ लेता है| ख़ुशी को कब और कैसे ढूंढा जाय यह वक्त ने सोनू को अच्छे से सीखा दिया है| फिर भी कभी-कभी ऐसा लगता है कि सोनू को अपने जीवन में जिस ख़ुशी की तलाश थी, वह आज भी ज़ारी है| इसलिए वह हर जगह, हर बात में ही उसे ढूंढ लेना चाहता है| बिलकुल पहले की तरह...!

सोनू बचपन से ही ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के दर्शन को अपने व्यवहार में उतारने की कोशिश करता था| लेकिन सिर्फ़ कोशिश करने भर से क्या होता है| कोशिश तो वह एक सफ़ल मनुष्य बनने की भी करता है| देश का एक पढ़ा-लिखा ज़िम्मेदार नागरिक, जो समाज को हर बुराइयों से लड़ने का हौसला प्रदान कर सके| पर ये सब अब उसे मुमकिन भी नहीं लगता, क्योंकि न तो अब उसकी रूचि पढ़ने में रही थी और न ही समाज सेवा में| उस वक्त वह अपने आप में मस्त रहने वाला फ़क़ीर टाइप सोचने लगा था| उसे अब जिंदगी किसी ऊँचाई पर भारी बोझ लेकर चढ़ने जैसा महसूस हो रहा था| इधर एक दिन मोनू के पूछने पर उसने कहा था – दोस्त...! मेरी जिंदगी बगैर मंजिल की राहें हैं और मैं उसपर बिना किसी मकसद के चलते जा रहा हूँ| यूँ कहे तो बस जीये जा रहा हूँ ...

उस दिन फ़ोन उठाते ही सुमन ने बिना किसी भूमिका के कहना शुरू की थी – ‘अगर मिलना है तो आज शाम को घर पे आ जाइये| कल शाम को मेरी ट्रेन है इसलिए मुझे दोपहर बाद ही घर से निकलना पड़ेगा...| आप आ रहे हैं न? हेल्लो ..., हेल्लो ..., अगर नहीं आयेंगे तो अभी बता दीजिये मुझे अपनी सहेली के घर भी जाना है|’

सोनू जब तक इधर से कुछ बोलता फ़ोन कट चुका था| सोनू उसकी बातों से इतना आहत हुआ था कि इधर से फ़ोन मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था| उसे याद आता है दो साल पहले २०१० का वो दिन जब वह उससे अंतिम बार दिल्ली आते समय मिला था| उसने कहा था - जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए घर का मोह त्यागना ही पड़ता है| अपनों से दूर रहना पड़ता है| सुमन के कहने पर ही तो सोनू दिल्ली आया था, अपने बेहतर कल के लिए, अपनी सुमन की ख़ुशी के लिए ताकि वह उसे वो सारी खुशियाँ दे सके जो उसे चाहिए|


२०१० से लेकर आजतक उससे मिलने का कोई संयोग नहीं बना था| और इस बार भी ...! सोनू को आज पहली बार सुमन के व्यवहार पे गुस्सा आ रहा था| वह इस बात को लेकर गुस्सा था कि – जब वो इतने दिनों बाद घर आई है तो पहले क्यों नहीं बताई?

फिर इसी के साथ कई सवाल उसके ज़ेहन में उठते हैं लेकिन आज उसका कोई सटीक जवाब उसके मन में नहीं था|


सोनू उस दिन चाह कर भी उससे मिलने नहीं जा सकता था| क्योंकि २३ जून २०१२, को वह दिल्ली में था और इतने कम समय में दिल्ली से घर पहुँचना मुश्किल था| वैसे सोनू को इस बात पर यकीन भी नहीं हो रहा था कि – उसकी सुमन इतने दिनों बाद जब घर आई है तो उससे बगैर मिले वापिस चली जाएगी| इसीलिए वह ठीक अगले दिन याने कि २४ जून २०१२ को यू.जी.सी. नेट का पेपर समाप्त होते ही सीधे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन गया और शाम की पहली ट्रेन से, भूख, प्यास और भीषण गर्मी का मुकाबला करते हुए, अपनी सुमन से मिलने १२०० किलोमीटर की लम्बी यात्रा पे निकल पड़ा| दो दिन के सफ़र के बाद जब सोनू उसके घर पहुँचा तो पता चला कि फ़ोन पर जो बातें हुई थी, वो सच था...

एक महीने बाद सोनू अपने टूटे हुए सपनों के साथ पुनः दिल्ली आ जाता है| सुमन अपने नए दोस्त समीर के साथ भी खुश नहीं हैं| इधर मोनू प्रेम विवाह करके बाप होने का गौरव प्राप्त कर लिया है| बाहर बहुत तेज बारिस हो रही है...       
                                                              - लल्टू कुमार  
हरियाणा सेंट्रल यूनिवर्सिटी, महेंद्रगढ़
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